Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ [४०] चक्रवर्ती के समय की बात कह कर अभी परंपरा से जैनी राजा महाराजाओं के अभाव में इस पडते कालमें चढ़ावेसे देवद्रव्य की वृद्धि करने का निषेध करना बडी भूल है. ६४ इसी तरहसे जिनराजके जन्मादि कल्याणको ६४ इंद्रादि मेरु पर्वत के ऊपर स्नात्र महोत्सव और नंदीश्वर द्वीपमें अठ्ठाई महोत्सव करते हैं, परंतु वहां अनादि मर्यादा मुजब यथा योग्य क्रमसे सब कार्य होते हैं, और शाश्वत चैत्यों में जीर्णोद्धारादिक कार्यों के लिये द्रव्य की कुछ भी जरूरत नहीं पडती व अनादि मर्यादा विरुद्ध आगे पीछे कुछ भी कार्य कोई भी नहीं कर सक्ता इसलिये वहां देव द्रव्य की वृद्धि की जरूरत न होने से चढ़ावा नहीं होता और यहां परतो अभी परंपरागत जैनी राजाओं के अभावसे जीर्णोद्धारादि कार्यों के लिये द्रव्य की बहुत ही जरूरत पड़ती है। और यहां के जिन मंदिरों में सेवा भक्ति का कार्य पहिले या पीछे कोई भी पुरुष कर सक्ता है इसलिये चढावें करके देव द्रव्य की वृद्धि करनेमें आती है उसके भेदको समझे बिनाही अनादि मर्यादा से शाश्वत चैत्यों में चढावा न होने का कह कर अभी इस जगह के मंदिरों में भी जीर्णोद्धा - रादि कार्यों के लिये देव द्रव्य की वृद्धि करने के लिये चढावा करने का निषेध करना प्रत्यक्ष ही वे समझी है । ६५ कई लोग कहते हैं कि देवद्रव्य इकट्ठा करने का रिवाज चैत्य वासियोंने चलाया है परंतु शास्त्रीय प्राचीन रिवाज नहीं है, ऐसा कहने वालोंका प्रत्यक्ष ही झूठहै. क्योंकि देखो जैसे अभी यति लोग शिथिलाचारी होकरके अनेक तरहसे अपने आचरण में अशुद्ध परिवर्तन करते हैं परंतु उन्हों के सामने क्रियापात्र संयमी संवेगी साधुओं का समुदाय मौजूद होने से शासन की मर्यादा में कुछ भी फेरफार नहीं कर सक्ते हैं. और देव द्रव्य की सार संभाल करना संयमी साधुओं का काम नहीं है किन्तु श्रावकों का काम है, तो भी कोई कोई यति लोग अभी देव द्रव्य की सार संभाल

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96