Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

View full book text
Previous | Next

Page 88
________________ [८] " I ६२ और भी देखिये – जैसे आनंद, कामदेवादि श्रावक १२ व्रतधारी गुरुभक्त थे इसलिये अन्न-वस्त्रादि गुरुमहाराज को बहोराते थे, तो भी सामान्य बात होनेसे उन्होंने अमुक मुनिको, अमुक वस्तुका, अमुक समय दान दिया था, ऐसा नहीं लिखा है. उसका मर्म भेद समझे बिना कोई कहे कि आनन्द - कामदेवादि श्रावकोने गुरुमहाराजको आहारादि वहोराये नहीं, अगर वहोराये होवें तो उसका लेख बतावो ऐसा कहने वालेको अज्ञानी समझना चाहिये. तैसेही कुमारपाल महाराजा के पहिले के बहुत संघ पतियोंने चढावे करके देवद्रव्यकी वृद्धि अवश्य ही की होगी. परंतु सामान्य बात होनेसे नहीं लिखी गई, उसका गर्म भेद को समझे बिना कोई कहे कि पहिले के संघ पतियोंने चढ़ावा नहीं किया था अगर किया होवे तो उसका लेख बतावा, ऐसा कहने वालेको अज्ञानी समझना चाहिये । देखिये पहिले के संघ पतियोंने अपने संघ में अमुक मुनिमहाराज को आहार वस्त्रादिदान दिया था ऐसा भी नहीं लिखा है, तो क्या पहिले के संघपति अपने संघ के साथमें जो जो आचार्य उपाध्याय व मुनिमहाराज और साध्वी जी होवें उन्हों को आहारादि नहीं वहोराते थे, ऐसा कभी नहीं होसक्ता, किन्तु यथा अवसर अवश्यही आहारादि से भक्ति करते थे, तो भी सामान्य बात होनेसे उन्हों के चरित्रों में मुनि दान का नहीं लिखा गया, तो भी अवश्य ही समझना चाहिये . तैसे ही पहिले के संघ पतियों के चरित्रों में चढ़ावा करने का नहीं लिखा तो भी तीर्थ की भक्ति और देवद्रव्यकी वृद्धि करने के लिये चढावे करने का अवश्य ही समझना चाहिये परंतु सामान्य विशेष बात के भेदको समझे बिनाही निषेध करना योग्य नहीं है. ६३ अगर कहाजाय कि पहिले संघपति चक्रवर्ती भरत महाराजाने शत्रुंजय और अष्टापद तीर्थ के ऊपर चढ़ावा नहीं किया इसलिये अभी चढ़ावा करना योग्य नहीं है, ऐसा कहना भी सर्वथा वे समझ है, क्योंकि उस समय भरत चक्रवर्तीने सत्र जंगह नवीन जिनमंदिर बनवाये

Loading...

Page Navigation
1 ... 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96