Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 42
________________ ४० झूठी बातें लिखकर अपने दुराग्रह को छोडा भी नहीं. तब उसपर संघ के आगेवान् गृहस्थ तर्फ से एक सूचना पत्र प्रकट हुआ वह यह है : श्रीमान् विद्याविजयजी महाराज, आपके ज्येष्ठ वदी २ के हैंडबिल को देखकर हमें अत्यन्त आश्चर्य व खेद हुआ क्यों कि आप उस में लिखते हैं कि बिचारे मणिसागरजीने कुछ गृहस्थों के हस्ताक्षर करवाकर तारीख १०-५-२२ को एक हैंडबिल निकाला है. महात्मनू, तो क्या आप यह बात सप्रमाण साबित कर सकते हैं कि श्रीमान् मणिसागरजी महाराजने ही गृहस्थों से हस्ताक्षर करवाकर वह हेंडबिल निकाला है ? आप लिखते हैं कि इन्दोर के कुछ गृहस्थों के हस्ताक्षर से ही तारीख १०-५-२२ का हैंडबिल छपा है उस में एकाध आगेवान् के सिवाय अन्य किसी आगेवान की सही नहीं है तो क्या हैंडबिल पर सही करनेवाले गृहस्थ संघ में नहीं कहला सकते ? यदि कहला सकते हैं तो क्या उनकी प्रार्थना मानने योग्य नहीं है ? आप के हैंडबिल पर से साफ जाहिर होता है कि संघकी व्याख्या में धनी मानी लोगोंका ही समावेश हो सकता है अन्य का नहीं तो क्या यह बात शास्त्रोक्त और प्रमाण भूत है ? आपने जो पहला हैंडबिल अनुचित भाषा में वैशाख सुदी १० को निकाला है उस में जिन जिन आगेवान गृहस्थों के नाम लिखे हैं उनकी सम्मति आपने अवश्यही ली होगी ऐसा हमें पूर्ण विश्वास है. आप लिखते हैं कि आचार्य श्रीविजयधर्मसूरिजी महाराज जैन धर्म की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति देनेको तैयार रहते हैं और जिन्होंने राजा महाराजाओं को प्रतिबोध कर. जैन धर्म के प्रति अनुराग बढाया है. ऐसे परमोपकारी आचार्य महाराज से हमारा नम्र निवेदन है

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