Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 41
________________ ३.९ ठहराव का भी भंग किया तब उसपर इन्दोर के निवासियोंने जाहिर रूप में रात्रि को बजार में सहीयें करवाई हैं यह बात तो प्रकटही है जिस पर भी मेरेपर सही करवाने का आरोप रखते हैं, यह भी आपका नवमा मृषावाद ही है. घंटे में १० इन सब बातों में यदि विद्याविजयजी सत्यवादी होवें तो २४ पूरा पूरा खुलासा प्रकट करें, नहीं तो लोकलज्जा छोडकर अपने मृषावाद का जाहिर रूप में मिच्छामि दुक्कडं देकर शुद्ध होवें व अपनी आत्माको निर्मल करें और यदि शास्त्रार्थ करना चाहते होवें तो अपने गुरु महाराज की सही लेकर जाहिर में आवें. फिर पीछे से झूठा झूठा छपवा कर अपनी इज्जत रखनेके लिये प्रपंचबाजीसे भोले लोगोंको भरमाने का धंधान लें बैठें. मैं यह विज्ञापन छपवाना नहीं चाहता था मगर आपने दो हैंडबिल छपवाकर उस में बहुत अनुचित शब्द लिखे तथा झूठी झूठी बातें लिखकर बहुत लोगों को संशय में गेरे, इसलिये उन्हों की शंका दूर करनेके लिये मेरेको इतना लिखना पडा हैं संवत् १९७९ ज्येष्ठ वदी ९. --------- मुनि - मणिसागर, इन्दोर. इस विज्ञापन पत्र का कुछभी जवाब दिया नहीं, अपने नो ( ९ ) मृषावादों को सत्य साबित कर सके नहीं व उन भूलों का जाहिर रूप में मिच्छामि दुक्कडं देकर अपनी आत्माको निर्मल भी किया नहीं और अपने मुरुमहाराजकी सही लेकर शास्त्रार्थ भी किया नहीं, चुप होकर कल रोज यहांसे विहार करगये. उस पर से उनकी आत्मा में सत्यता, निर्मलता व शास्त्रार्थ करने की कैसी योग्यता है, उस बातका विचार ऊपर के सब लेखसे सर्व संघ आप ही कर लेवेगा. और संघकी विनंती को मान नहीं दिया व अपनी प्रत्यक्ष भूल का भी स्वीकार नहीं किया व ज्येष्ठ वदी २ के अपने हैंडबिल में झूठी

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