Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 30
________________ २८ ऊपर बड़ा भारी क्रोध करके उस निरापराधी श्रावक को अपने स्थान से बाहिर निकालने का एकदम हुकम कर दिया और अपने पदकी, साधु पनेकी मर्यादा को भूलगये ( इस बनावको देखकर लोगों को बहुत बुरा मालुम हुआ परंतु आपकी शर्मसे कुछ बोले नहीं. मगर आपके न्यायकी सहनशीलता की योग्यता को अच्छी तरह समझ गये ) उसी तरह यदि सत्य कहने से मेरे परभी आप या आपके अनुयायी किसी तरह से क्रोधमें आकर अनर्थ खडा कर बैठें या मनमाना झूठ लिख देवें तो बया भरोसा? इस कारण से मैं आपके स्थानपर इस विषयसंबंधी नहीं आसकता. ८ सत्यग्रहण करनेकी सही वगैरह बातें तें हुए बिना ही पहिले से संघ को सूचना देने का कहना ही फझूल है. और जब मेरे साथ शास्त्रार्थ करने का मंजूर करलिया शास्त्रार्थ के लिये ही इन्दोर जलदिसे मेरे को बुलवाया, तब से ही इस शास्त्रार्थ में मेरी योग्यता साबित हो चुकी है. अब फजूल बारबार योग्यता अयोग्यता की और संघ की आद लेना यह तो अपनी कमजोरी छुपाने का खेल खेलना है. ९ इतने पर भी सेठ घमडसी जुहारमलजी के नोहरे में आपके स्थान पर ही मेरेको इस विषय के शास्त्रार्थ के लिये बोलाने की आप इच्छा रखते हैं, तो मैं आनेको तयार हूँ. मगर वहां किसी तरह की गडबड न होने पावे इस बात की सब तरह की जोखमदारी की सही मकान के मालिक सेठ पूनमचंदजी सावणसुखा के पास भिजवाइये और मेरे साथ कौन विवाद करेगा उनका नाम लिखिये, आपकी तर्फ से एक साधुके सिवाय अन्य किसीको बीचमें बोलने का हक न होगा, तथा खाली जबान की बातों से काम न चलेगा. सब लेखी व्यवहार से सवाल-जबाब होंगे. अगर उसमेंभी जितनी आपकी बातें झूठी ठहरें उतनी बातें के आप मिच्छामि दुक्कडं देंगे या नहीं इन सब बातोंका खुलासा आपके हाथकी सही से २४ घंटे में भेजिये, मैं आने को तयार हूं मेरेको कोई इनकार

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