Book Title: Davvnimittam
Author(s): Rushiputra  Maharaj, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 7
________________ ..................-. - ----- निमित्तशास्त्रम [VIE पढ़ा । मंगलाचरण में भगवान आदिनाथ और जिन भगवान की स्तुति को पाया तो इस कृति का जैनत्व स्वयमेव सिद्ध हो गया । इस निश्चय के उपरान्त हमने इस ग्रन्थ का अनेकों बार स्वाध्याय किया। देवलगाँव राजा के चातुर्मास में अनेक बार जैनज्योतिष विषयक वर्या में इस राज्य का आधा । सं. वे कुरा साधुओं में भी इस ग्रन्थ के मर्म को समझने की इच्छा जागृत हुई। उन्हें समझाने के उद्देश्य से ही इस कृति का प्रणयन हुआ। इस बात को प्रामाणिकता से स्वीकार करने में मुझे कोई झिझक नहीं है कि यह अनुवाद मेरा स्वतन्त्र अनुवाद नहीं है। हस्तलिखित पाण्डुलिपि में ढूंढारी भाषा में अज्ञातकर्तृक एक अनुवाद है. जिसका प्रकाशन इसी कृति के परिशिष्ट में किया जा रहा है, उसका सहयोग लेकर मैंने इस अनुवाद को १९१७ में किशनगढ़ के वर्षायोग में किया था *। देवलगाँव राजा में प्रत्येक प्रकरण के अन्त में प्रकरणवर्णित विषय का विशदीकरण किया गया है। इस कार्य के लिए भद्रबाहु संहिता और अन्य में ज्योतिषीय ग्रन्थों का सहयोग लिया है। म सौभाग्य से मुझे श्री कल्याण पावर प्रिण्टिंग प्रेस (सोलापुर) से प्रकाशित वईमान पार्श्वनाथ शास्त्री के व्दारा सम्पादित और पण्डित श्री लालाराम जी शास्त्री के व्दारा अनुवादित ग्रन्थ प्राप्त हुआ। गुरुदय की अनुकम्पा से ही यह अनुवाद पूर्ण हुआ है। मैं ज्योतिष का जाता नहीं हूँ। फिर भी मैंने गुरुभक्ति से प्रेरित होकर इस कृति का अनुवाद किया है। इस अनुवाद में यदि कहीं तृटी रह गयी हो तो सुधीजन , सुधारने का कष्ट करें। ज्योतिष और कर्मसिद्धान्त दोनों का गम्भीरतापूर्वक विचार करने पर दोनों में किसीप्रकार का विरोधाभास परिलक्षित नहीं होता। इन दोनों की विषयविवेचना को समझाना अनिवार्य है। उसे ज्ञात किये। बिना इस ग्रन्थ का स्वाध्याय करने वाले भव्य के मन में अनेक प्रश्न । जागृत हो सकते हैं। ॐ संसार में जीव के साथ घटने वाली प्रत्येक घटना के पीछे किसी न किसी कर्म की गति कारणीभूत होती है । मनुष्य ने पूर्वभव में जो कुछ है शुभ अथवा अशुभ कर्म उपार्जित किया था. इस भव में वह उन कर्मों का

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