Book Title: Dashvaikalika Sutram Part 01 Author(s): Ghasilal Maharaj Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti View full book textPage 7
________________ (४) चौथे अध्ययन में-'जो यावन अनाचीर्णों का निवारण करता है वही छह काया का रक्षक हो सकता है' इसलिये छहकाय के स्वरूप का निरूपण तथा उनकी रक्षा का विवरण है । मुनि अयतना को त्यागे यतना को धारण करे। यतना मार्ग वही जान सकता है जिसे जीव अजीव का ज्ञान है। जो जीवादि का ज्ञाता है वह क्रम से मोक्ष को प्राप्त करता है। पिछली अवस्था में भी चारित्र ग्रहण करनेवाला मोक्ष का अधिकारी हो सकता है । (५) पांचवें अध्ययन में छहकाया का रक्षण निरवद्य भिक्षा ग्रहण से होता है, अतः भिक्षा की विधि कही गई है। (६) छठवें अध्ययनमें 'निरवद्य भिक्षा लेनेसे अठारह स्थानोंका शास्त्रानुसार आराधन करता है, उन अठारह स्थानों का वर्णन है। उनमें सत्य और व्यवहार भाषा वोलनी चाहिये । (७) सातवें अध्ययन में 'अठारहस्थानों का आराधन करने वाले मुनिको कौनसी भाषा वोलनी चाहिये इसके लिये ४ भापाओं का स्वरूप कहा गया है। उनमें सत्य और व्यवहार भाषा बोलना चाहिये । ___(८) आठवें अध्ययन में-'निरवद्य भाषा बोलनेवाला पांच आचाररूप निधान को पाता है' अतः उस आचाररूप निधान का वर्णन है । ___ (९) नववें अध्ययन में पांच आचार का पालन करने वाला ही विनयशील होता है। अतः विनय के स्वरूप का निरूपण किया है । (१०) दशवें अध्ययन में-'पहले कहे हुए नवों अध्ययनों में कही हुई विधिका पालन करने वाला ही भिक्षु हो सकता है' इस लिए भिक्षु के स्वरूप का वर्णन किया है । निवेदक समीर मुनि.Page Navigation
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