Book Title: Dashvaikalaik Sutram
Author(s): Aatmaramji Maharaj, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 460
________________ सकते हैं। किन्तु जब कठिन वचन कंटक कर्णेन्द्रिय द्वारा मन का बेधन करते हैं, तो उनका मन से निकलना अत्यन्त दुष्कर हो जाता है। इतना ही नहीं, किन्तु वे स्थायी वैरभाव के बढ़ाने वाले हो जाते हैं तथा कुगति में ले जाने के कारण महाभय के उत्पन्न करने वाले हैं। सूत्र में 'वचन कंटक' के लिए जो 'दुरुद्धर' शब्द आया है, उसका यही भाव है कि जो दुर्वचन जिस किसी के प्रति कहे जाते हैं, वे उनके हृदय में वज्रमुद्रा से मुद्रित हो जाते हैं, वे उनको कभी भूल नहीं सकते। क्योंकि, दुर्वचन का प्रहार ही ऐसा होता है। कुल्हाड़ी से काटे हुए वृक्ष भी पुनः हरे-भरे पल्लवित हो सकते हैं, किन्तु कटुवचन रूपी जहरीली कुल्हाड़ी की चोट खाया हुआ हृदयतरु फिर प्रफुल्लित हो, यह बहुत ही कठिन है। अतः वे पुरुष धन्य हैं, जो दुर्वचनों पर अपना कोई लक्ष्य नहीं रखते, जो 'गच्छति करिणि भषन्तु भषकाः' के नीति मार्ग पर पूर्ण दृढ़ता से चलते हैं। उत्थानिका-अब पुनः इसी विषय को सुस्पष्ट करते हैं:समावयंता वयणाभिघाया, कन्नंगया दुम्मणिअंजणंति। धम्मुत्ति किच्चा परमग्गसूरे, . जिइंदिए जो सहई स पुजो॥८॥ समापतन्तो वचनाभिघाताः, कर्णंगता दौर्मनस्यं जनयन्ति। धर्म इति कृत्वा परमानशूरः, जितेन्द्रियो यः सहते सः पूज्यः॥८॥ पदार्थान्वयः समवयंता-इकट्ठा होकर सामने आते हुए वयणाभिघाया-कठिन वचन रूपी प्रहार कन्नंगया-कर्णेन्द्रिय में प्रविष्ट होते ही दुम्मणिअं- दौर्मनस्य भाव को जणंति-उत्पन्न करते हैं परमग्गसूरे-वीर पुरूषों का परमाग्रणी जिइंदिए-इन्द्रियों को जीतने वाला जो-जो पुरुष सहई-वचन प्रहारों को सहन करता है स-वह पुज्जो-परम पूज्य होता है। ___मूलार्थ-समूह रूप से सम्मुख आते हुए कटुवचन प्रहार, श्रोत्र मार्ग से हृदय में प्रविष्ट होते ही अतीव दौर्मनस्य भाव समुत्पन्न कर देते हैं। परन्तु जो शूर वीरों के अग्रणी, इन्द्रियजयी पुरुष इन वचन प्रहारों को शान्ति से सहन कर लेते हैं, वे ही संसार में पूजा पाने योग्य होते हैं। टीका-संसार में दुर्वचनों का भी एक ऐसा विचित्र प्रहार है, जो बिना किसी रूकावट के शीघ्रतया कर्ण कुहरों को भेदन करता हुआ अन्तर्हृदय में बड़े जोर से लगता है और लगते ही हृदय में विकट दौर्मनस्य भाव पैदा कर देता है। बड़े बड़े विचारशील धुरंधर विद्वान् तक भी इस वचन की चोट से ऐसे मूर्च्छित हो जाते हैं कि उन्हें अपने कर्त्तव्याकर्त्तव्य का भान नहीं रहता। वे 'शठं प्रति शठं कुर्यात्' की अनुदार पद्धति को पकड़ कर स्वयं मिटने को और दूसरों को मिटाने को तत्पर हो जाते हैं। परन्तु साथ ही एक बात यह और है कि इस वचन प्रहार नवमाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [399

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