Book Title: Dashvaikalaik Sutram
Author(s): Aatmaramji Maharaj, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
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________________ पुव्वपविटुं पेहाए णो तेसिं संलोए सपडिदुवारे चिढेजा। केवली बूया "आयाणमेयं"। [573 सू.] (अ.१०उ.५.) , पुरा पेहाए तस्सट्ठाए परो असणं वा 4 तमइक्वमित्तु न पविसे न चिढे चक्खुगोअरे। आहटु दलएज्ज। अह भिक्खूणं एगंतमवक्कमित्ता , तत्थ चिट्ठिज्ज संजए॥ पुत्वोवदिट्ठा एस पतिन्ना, एस हेऊ, एस [दश.अ.५उ.२गा.११] उवएसो, जंणे तेसिं संलोए सपडि-दुवारे चिट्टेज्जा से तमायाए एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिठेजा। * [574 सू. (अ.१०उ.५] से भिक्खूवा भिक्खुणी वा जाव पविट्टे- साणं सूइयं गाविं, दित्तं गोणं हयं गयं। समाणे सेजं पुण जाणेजा, गोणं वियालं संडिब्भं कलहं जुद्धं, दूरओ परिवजए॥ पडिपहे पेहाए, महिसं वियालं पडिपहे [दश.अ.५उ.१गा.१२] पेहाए, एवं मणुस्सं आसं हत्थिं सीहं वग्धं दीवियं अच्छं तरच्छं परंसरं सियालं विरालं सुणयंकोलसुणयंकोकंतियं चित्ताचेल्लरयं वियालं पडिपहे पेहाए, सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेजा, णो उजयं गच्छेज्जा। [५७०सू.] अ.१०उ.५) से भिक्खू वा (2) जाव समाणे अंतरा घसीवा, भिलुगा वा विसमे वा विज्जले वा परियावज्जेजा, सति परक्कमे संजयामेव णो उजयं गच्छेजा। [571 सू.] (अ.१०उ.५.) औवायं विसमं खाणं, विजलं परिवजए। संकमेण न गच्छिज्जा, विज्जमाणे परक्कमे॥ - [दश.अ.५उ.श्गा.४] पवडते व से तत्थ, पक्खलंते व संजए। हिंसेजपाणभूयाई, तसे अदुव थावरे॥ तम्हा तेण न गच्छिज्जा, संजए सुसमाहिए। सइ अन्नेण मग्गेण, जयमेव परक्कमे। [दश.अ.५उ.१गा.५-६] 479 ] दशर्वकालिकसूत्रम् [परिशिष्टम्

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