Book Title: Dashvaikalaik Sutram
Author(s): Aatmaramji Maharaj, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 524
________________ अह विवित्तचरिया विजिआ चूला। अथ विविक्तचर्या द्वितीया चूलिका। उत्थानिका-प्रथम चूलिका द्वारा धर्म में स्थिर होना प्रतिपादन किया गया है। इस द्वितीय चूलिका द्वारा साधु को अप्रतिबद्ध होकर विहार करने का उपदेश देते हैं। क्योंकि, जो धर्म में दृढ़ होता है, वही सूत्रोक्त क्रियाओं को करने में कटिबद्ध होता है। यही इन दोनों चूलिकाओं का आपस में सम्बन्ध है। अब सूत्रकार फल-निर्देश-पूर्वक चूलिका की प्रशंसा करते हुए, प्रथम प्रतिज्ञा सूत्र कहते हैं चूलिअंतु पवक्खामि, सुअंकेवलिभासि। जंसुणित्तु सुपुण्णाणं, धम्मे उप्पज्जए मई॥१॥ चूलिकां तु प्रवक्ष्यामि, श्रुतां केवलिभाषिताम्। यां श्रुत्वा सुपुण्यानां, धर्मे उत्पद्यते मतिः॥१॥ पदार्थान्वयः-केवलिभासिअं-केवली भाषित सुअं-श्रुतरूप चूलिअं-चूलिका को पवक्खामि-कहूँगा जं-जिस को सुणित्तु-सुन करके सुपुण्णाणं-अच्छे पुण्यवान् जीवों को धम्मे-चारित्र धर्म में मई-श्रद्धा उप्पज्जए-उत्पन्न होती है। मूलार्थ-जो भगवद्भाषित है, जो श्रुतस्वरूप है और जिस के श्रवण से पुण्यात्मा जीवों को धर्म में दृढ़ श्रद्धा होती है। ऐसी द्वितीय चूलिका को कहता हूँ। टीका-चूलिका के रचयिता मुनि कहते हैं कि मैं जो यह चूलिका कहता हूँ वह, कुछ मन:कल्पित एवं फलशून्य नहीं है। यह तो वह चूलिका है, जो केवली भगवंतों द्वारा प्रतिपादन की गई है, जिसको श्रुतज्ञान में स्थान मिला हुआ है और जिसको सुनकर पुण्यानुबन्धी पुण्य वाले श्रेष्ठ जीवों को चारित्रधर्म में अतीव दृढ़ सुमति एवं श्रद्धा उत्पन्न होती है। 'धम्मे उप्पज्जए मई' पद के कहने का यह भाव है कि जिसकी चारित्र धर्म में संलग्नता हो जाती है, उसकी सब मन की कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि यह धर्म अचिन्त्य चिन्तामणि रत्न है, सकल चिंता नाश करने वाला है। यह प्रथम सूत्र 'प्रतिज्ञा सूत्र' है क्योंकि इसमें केवल माहात्मय वर्णन के साथ 'मैं चूलिका कहता हूँ' यही कथन किया गया है। विषय का वर्णन आगे के सूत्रों में किया जाने वाला है। उत्थानिका- अब विषय भोगों से पराङ्मुख रहने का उपदेश देते हैं:

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