Book Title: Dashvaikalaik Sutram
Author(s): Aatmaramji Maharaj, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 536
________________ पर काएण-काय से वाया-वचन से अदु-अथवा माणसेण-मन से अपने आप को दुप्पउत्तंदुष्प्रयुक्त(प्रमादयुक्त) पासे-देखे तो धीरो-धैर्यवान् साधु तत्थेव-उसी स्थान पर अपने आपके * पडिसाहरिज्जा-शीघ्रतया संभाल ले इव-जिस प्रकार आइन्न ओ-जातिवान् अश्व खिप्पं-शीघ्र क्खलीणं-लगाम ग्रहण करता है और संभल जाता है। मूलार्थ-अपने आप को जब मन से, वचन से एवं काय से स्खलित होता हुआ देखे, तब बुद्धिमान् साधु को शीघ्र ही सँभल जाना चाहिए। जिस प्रकार जाति-युक्त अश्व नियमित मार्ग पर चलने के लिए शीघ्र ही लगाम को ग्रहण करता है, उसी प्रकार साधु भी संयम-मार्ग के लिए सम्यक् विधि का अवलम्बन करे। टीका-विचारशील साधु, जब संयम सम्बन्धी प्रतिलेखना आदि क्रियाएँ करे तो यदि प्रमाद वश कोई मन, वचन एवं काय योग से भूल हो जाए, तो उसी समय शीघ्र ही अपनी आत्मा को सँभाल ले अर्थात् निजात्मा को आलोचना द्वारा पृथक् कर ले, क्योंकि उसी समय न सँभलने से फिर आगे चल कर अनेक दोषों की उत्पत्ति हो जाएगी। 'छिद्रेष्वना बहुली भवन्ति'। अपने आप को किस प्रकार सँभाल ले-इस पर सूत्रकार अश्व का दृष्टान्त देते हैं। जिसका भाव यह है कि जिस प्रकार उत्तम जातिवन्त शिक्षित घोड़ा, लगाम के संकेत के अनुसार विपरीत मार्ग को छोड़कर नियमित मार्ग पर चलता है और सुखी होता है। इसी प्रकार बुद्धिमान् साधु भी शास्त्रीय विधि के अनुसार जो संयम का मार्ग नियत है, उस पर असंयम मार्ग को छोड़ कर चले और लोक-परलोक दोनों में यशस्वी बने। - उत्थानिका- अब प्रस्तुत प्रकरण का उपसंहार करते हैं:जस्सेरिसा जोग जिइंदिअस्स, धिईमओ सप्पुरिसस्स निच्चं। तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीअइ संजमजीविएण॥१५॥ यस्य ईदृशाः योगाः जितेन्द्रियस्य, धृतिमतः सत्पुरुषस्य नित्यम्। तमाहुलॊके प्रतिबुद्धजीविनं, स जीवति संयमजीवितेन॥१५॥ पदार्थान्वयः- जिइंदिअस्स-इन्द्रियजयी धिईमओ-धैर्यवान् जस्स-जिस सप्पुरिसस्स-सत्पुरुष के जोग-मन वचन काय योग निच्चं-सदा एरिसा-इस प्रकार के रहते हैं तं-उसको लोए-लोक में पडिबुद्धजीवी-प्रतिबुद्ध जीवी आहु-कहते हैं, क्योंकि सो-वह संजमजीविएणं-संयम जीवन से जीअइ-जीता है। मूलार्थ-जिसने चंचल इन्द्रियों को जीत लिया, जिसके हृदय में संयम के प्रति अदम्य धैर्य है, जिसके तीनों योग सदैव वश में रहते हैं, उस सत्पुरुष को विद्वान् लोग द्वितीया चूलिका] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [475

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