Book Title: Dashvaikalaik Sutram
Author(s): Aatmaramji Maharaj, Shivmuni
Publisher: Aatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti

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Page 478
________________ का कटु उत्तर नहीं देने वाला पडिपुन्न-सूत्रों को पूर्ण रूप से जानने वाला आयइं-अतिशयपूर्वक आययट्ठिए-मोक्ष का चाहने वाला दंते-मन और इन्द्रियों को वश में रखने वाला आयारसमाहिसंवुडेआचार समाधि द्वारा आश्रय का निरोध करने वाला मुनि भावसंधए-मोक्ष-गामी होता है। मूलार्थ-आचार समाधि के चार भेद वर्णित किए हैं। यथा- इस लोक के लिए चारित्र का पालन नहीं करना चाहिए 1, परलोक के लिए चारित्र पालन नहीं करना चाहिए 2, कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लोक के लिए भी आचार पालन नहीं करना चाहिए 3, केवल अर्हत् पद की प्राप्ति के लिए ही आचार पालन करना चाहिए 4, यही चतुर्थ पद है। इस पर एक गाथा भी कही गई है__ जिन प्रवचनों पर अटल श्रद्धा रखने वाला; निन्दक मनुष्यों को कभी कटुक उत्तर नहीं देने वाला; शास्त्रों के गूढ़ रहस्यों को प्रतिपूर्ण रूप से समझने वाला; मोक्ष को अतिशय-पूर्वक चाहने वाला; आचार-समाधि द्वारा आश्रवों के प्रबल वेग को रोकने वाला एवं चंचल इन्द्रियों को स्व-वशवर्ती करने वाला मुनि; अपनी आत्मा को अक्षय मोक्ष मन्दिर में ले जाता है। . टीका- अब सूत्रकार तृतीय तप समाधि के अनन्तर चतुर्थ आचार-समाधि का वर्णन करते हैं। यथा-साधु के मूल एवं उत्तर भेद से दो प्रकार के नियम होते हैं, साधु इन दोनों ही प्रकार के नियमों को इस लोक के क्षणिक सुखों के लिए तथा परलोक के स्वर्ग आदि सुखों के लिए और कीर्ति, वर्ण आदि के लिए भी कदापि पालन न करे, क्योंकि ये सुख, सुख नहीं, किन्तु दुःख हैं। ये सुख उस“किम्पाक" फल के समान होते हैं, जो खाने में तो बहुत मीठा एवं स्वादिष्ट लगता है, परन्तु पीछे से प्राणों का अपहरण कर लेता है। उपर्युक्त हेतुओं को लेकर यदि आचार-पालन नहीं करना तो फिर किस हेतु को लेकर करना, इस प्रश्न के उत्तर में सूत्रकार कहते हैं कि केवल अर्हत्प्रणीत शास्त्रों में जिस आचार द्वारा जीव का आश्रव से रहित होना बतलाया है, उसी आश्रव-निरोध के लिए आचार पालन करना चाहिए, अर्थात्-अर्हत् पद की प्राप्ति के लिए ही आचार-पालन करना योग्य है।वृत्तिकार भी यही कहते हैं। तथाहि-"आर्हतैःअर्हत् सम्बन्धिभिर्हेतुभिरनाश्रवत्वादिभिः, आचारं-मूलगुणोत्तरगुणमयमधितिष्ठेत् निरीहःसन् यथा मोक्षएव भवतीति चतुर्थं पदं भवति।" सूत्रकार ने आचार समाधि की पूर्णता के लिए मोक्षपद प्राप्ति में सहायभत अन्य बातें भी बतलाई हैं। यथा-साधको अर्हतों के वचनों पर अचल रखनी चाहिएः, कोई किसी कारण से कटु वचन भी कह दे तो असूयावश होकर कोई कठोर प्रत्युत्तर नहीं देना चाहिए; पाँचों इन्द्रियों को एवं छठे मन को अपने वश में रखना चाहिए; एवं सूत्र-सिद्धान्तों का भी पूर्ण ज्ञान करके आश्रवों का निरोध करना चाहिए। ये साधन मोक्ष प्राप्ति के उत्कृष्ट साधन हैं। इनके बल से अनेकों जीव अजर-अमर पद पर प्रतिष्ठित हो चुके हैं। यह शास्त्र से उद्धृत बात नहीं, किन्तु अनुभूत है। उत्थानिका- अब सूत्रकार सभी समाधियों के फल के विषय में कहते हैं:अभिगम चउरो समाहिओ, सुविसुद्धो सुसमाहिअप्पओ। सुविधा नवमाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [417

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