Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 13
________________ उत्तम क्षमा । [ ९ ५ 100 अब जैसे बने उसे क्षमा अपने दोषोंकी आलोचना परके परिणामों में क्रोधभाव उत्पन्न होगया । ग्रहण कराना उचित है और इसलिये वे करके स्वनिन्दा करते हुए उस पुरुषसे नम्र शब्दोंमें क्षमा मांगकर शान्त कर देते हैं । और अपने आपको किंचित् भी क्रोध नहीं 1 देते हैं। " ་་ ་ན་་ ་ ་ 、 · . किन्तु कदाचित् कोई निष्कारण ही क्रोध कर कुवचन बोले तो • सोचते हैं कि इसमें मेरा तो कुछ भी दोष है ही नहीं, यह पुरुष व्यर्थ ही कोसे अपने आत्माको मलिन कर कर्मबन्ध कर रहा है और व्यर्थ ही बिना सोचे मुझको दुर्वचन कह रहा है । यह अज्ञानी " है, पागल है । इसीसे यह विवेक विना व्यर्थ ही अपना समय नष्ट करता हुवा स्ववचन बिगाड़ रहा है सो पागल व अज्ञानी के कहने का बुरा ही क्या मानना ? वह तो अभी केवल मुंहसे ही बकता है, मारता तो नहीं है क्योंकि पागल तो मारता है, बांधता है, काटता " है, कपड़े फाड़ देता है, वस्तुओंको तोड़ मरोड़ कर फैक देता है, और अनेक नहीं करने योग्य कार्य भी करता है, सो अभी तो यह 'केवल मुंहसे ही दुर्वचन कह रहा है और कुछ तो नहीं करता है, सो ये दुर्वचन मेरे शरीर में कहीं भी चिपट तो जाते नहीं हैं, इसलिये इनसे मेरी हानि ही क्या है ? कुछ नहीं । अब यदि उन्हें कोई मारने भी लगे तो सोचते हैं कि वह मुझे केवल मारता ही तो है, कुछ प्राण रहित तो नहीं करता है 1 और यदि कोई प्राण हरण भी करने लगे, तो सोचते हैं कि - यह प्राण ही तो हरण करता है, कुछ मेरा धर्म जो क्षमा ( आत्माका

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