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८] श्रीदशलक्षण धर्म । संसारके प्राणियोंको सर्वदा भयभीत करते रहते हैं, वे सब अनायास ही क्षमावान् महात्मा पुरुषोंके वशमें होजाते हैं। ____ क्षमावान् पुरुषका कभी कोई भी शत्रु नहीं होना है। देखो, जब कोई पुरुष किसी अन्य पुरुषपर कुछ क्रोध करता है और वह अन्य पुरुष यदि उसे शान्ति भावसे सहन कर लेता है, तो क्रोध करनेवाला पुरुष स्वयं ही लज्जित हो पश्चात्ताप करने लगना है।
और भी क्रोधसे क्या २ हानि होती है सो सुनिये-क्रोधी पुरुष मणिवाले सर्पवत् गुणयुक्त होनेपर भी प्रशंसा नहीं पाता, क्रोधी पुरुषके व्रत, जप, तप, नियम, उपवास, संयम, दान, पूजा, जप, स्वाध्याय, विद्या आदि समस्त गुण पुण्यसहितके भी क्षणभरमें भस्म होजाते हैं। क्रोधसे धैर्य छूट जाता है, वुद्धि नष्ट होजाती है रोग घेर लेते हैं, हठ बढ़ जाता है, शरीर शिथिल होजाता है, धर्म अलग होजाता है, वचन अन्यथा प्रवृत्त होने लगते हैं, मुख व नेत्र लाल होजाते हैं, शरीर कांपने लगता है, रोमांच खड़े होजाते हैं, विचारशक्ति नहीं रहती है, दया चली जाती है, मित्रताके बदले शत्रुता बढ़ जाती है, अपयश फैल जाता है, दरिद्रता घेर लेती है, इत्यादि और भी अनेक प्रकारसे हानि होती है और इसके विपरीत क्षमासे सर्व गुण प्रगट होते हैं, इसीलिये सुखाभिलाषी सत्पुरुष सदैव क्षमाभाव धारण करते हैं।
जब कोई उन्हें दुर्वचन कहता है, अर्थात् उनपर क्रोध करता है, तो वे सोचते हैं कि अमुक पुरुषके क्रोधका कारण क्या है ? यदि मैंने उसका कुछ भी अपराध किया है, तब तो मुझपर उसका क्रोध कर दुर्वचन कहना ठीक ही है । मैंने क्यों ऐसा अनर्थ किया, जिससे