Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 69
________________ उत्तम त्याग। [६५ व अल्पमूल्यमें वितरण करना, शीत ऋतु दीन पीड़ितोंको वस्त्र देना, विद्यार्थियोंको वस्त्र बनवा देना, सत्पात्र साधर्मी भाइयोंको जिनके पास तीर्थ यात्रादिका साधन न हो, उन्हें उसका साधन वाहन आदिका बन्दोवस्त कर देना, इत्यादि। ___दानमें दानकी विधि, दानका द्रव्य, दानका पात्र और दातारके भावोंकी अपेक्षासे अर्थात् विशेषतासे विशेषता होती है। इनमें दातारके भाव मुख्य हैं । शुभ भावोंसे सुपात्रको उसकी योग्यतानुसार दिया हुआ दान अतुल फलदाता होता है। जैसे तीर्थकरको दिया हुआ दान दाताको तद्भव मोक्ष पहुंचा देता है और कुपात्रको दिया हुआ दान हीनऋद्धि, कुभोगभूमि या तिर्यंचगतिका कारण होता है। कहावत है__" मान बढ़ाई कारणे, जे धन खर्चे मूंढ़ । मरकर हाथी होयँगे, धरनी लटके झूढ़ ॥" और अपात्रको दिया हुआ दान तो नरक निगोदादि गतिको ही ले जानेवाला होता है। . दान आत्माका निजभाव है, इसीलिये इसे धर्म कहा गया है। कारण कि मोहादि भाव, जिनसे यह जीव परवस्तुओंको अपनाकर उनमें लवलीन हुआ “ मैं मैं और मेरा मेरा " कर रहा है और जिनके संयोग वियोगमें हर्ष-विपाद करता है, इसके स्वभाव नहीं हैं किंतु विभाव हैं। और यह जीव तो इनसे भिन्न स्वच्छन्द सम्पूर्ण पदार्थोंका ज्ञाता- दृष्टा मात्र है, कर्ता भोक्ता नहीं है, सबसे भिन्न स्वरूपमें रमण करनेवाला सचिदानन्द स्वरूप है । जब यह आत्मा स्वानुभव करता है

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