Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 73
________________ उत्तम त्याग। [६९ तो दयादार हैं । न दोगे, तो लड़ झगड़कर तुम्हारे आगे पीछे लेवेंगे ही, तब उन्हें देकर तुमने क्या दान किया ? यदि किसी निरपेक्ष पुरुषको भक्ति व करुणासे दिया, तो निःसंदेह वह दान कहाता । कितने लोग विना सोचे समझे पुरानी रूढिको पकड़े हुए केवल एक ही कार्य मंदिर बनाने व स्थ प्रतिष्ठादिमें जो कि कुछ कालसे उस समयकी आवश्यकतानुसार किसी बुद्धिमान पुरुपका चलाया हुआ था, खर्चते चले जाते हैं, और यह नहीं देखते कि अब इसकी कहां कैसी आवश्यकता है या नहीं है ? विना आवश्यकताका दान द्रव्यका अपव्यय मात्र समझना चाहिये । इसलिये सदा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी योग्यताको समझकर ही दान देना चाहिये। जो दान नहीं देते हैं वे अपने ही आत्माको ठगते हैं-अर्थात् मोहसे तीन कर्म बन्ध कर संसारमें भटकते हैं, इसलिये दान करना मनुष्यका प्रधान कर्तव्य है । सो ही कहते हैं दान चार परकार, चार संघको दीजिये । धन बिजली उनहार, नरभव लाहो लीजिये। उत्तम त्याग कहां जग सारा,औषधि शास्त्र अभय आहारा। निश्चय रागद्वेष निरवारे, ज्ञाता दोनों दान सम्हारे ॥ दोनों सम्हारे कूप जल सम, द्रव्य घरमें परिणया । निज हाथ दीजे साथ लीजे, खाया खोया वह गया। धन साधु शास्त्र अभय दिवैया, त्याग राग विरोधको। विन दानश्रावक साधु दोनों; लहें नाहींवोधको ।। ८ ॥

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