Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 88
________________ ८४] श्रीदशलक्षण धर्म । अनेक विवाह करने लगे। और " साठे नाठे भी पाठे बन गये " अर्थात् ६१ वर्षके बूढ़े वर वन बनकर बेचारी कन्याओंका भाग्य फोड़ने और उनको विधवा बनाने लगे। उन्होंने इस बातपर पानी डाल दिया कि शुक्रोदयके पश्चात् और शुक्राम्तसे पहिले पहिले ही विवाह सम्बंध तथा स्त्री समागम करना चाहिये । अर्थात् जब पुरुषोंका २० या २५ वर्षके बाद और कन्याओंका १६ वर्षके बाद शुक्रोदय (वीर्य परिपक्क ) होजाय तबसे लेकर करीव ४० वर्षकी अवस्था तक शुक्रास्त (वीर्य क्षीण ) होनेसे पूर्वतक ही सम्बंध योन्य होता है इत्यादि । ब्राह्मणोंने भी लोभसे चट इस ( शुक्रोदय और शुक्रास्त) का अर्थ बदलकर शुक्र नामके नक्षत्रका उदय और अस्तका अर्थ बतला दिया कि-'कार्तिक माससे शुक्र तारेका उदय होता है और आषाढ़में उसका अस्त होजाता है, इसलिये कार्तिकके बाद आषाढ़ तक ही लग्न करना चाहिये इत्यादि । वस, भोले तथा विषयी जीव ठगाये गये। इस वातका १ प्रमाण ही वस होगा कि यदि आपाड़के बाद कार्तिक तक लगादि सम्बन्ध अयोग्य होते तो भगवान् श्री नेमिनाथ ( तीर्थकर) के विवाहका समारम्भ कैसे श्रावण मासमें होता? और कैसे दे तोरणसे रथ फेरकर श्रावण सुदी ६ को गिरनार गिरिके शेसावनमें दीक्षा लेते ? इत्यादि बातोंसे स्पष्ट है कि ये झूठे पचड़े अर्थका अनर्थ करके इन लोभी ब्राह्मणोंने ज्योतिष आदिका भय बताकर लोगोंके पीछे लगा दिये और खूब द्रव्य ठगने लगे, तथा इन भोले जीवोंका. ब्रह्मचर्य नष्ट कर सत्यानाश कर दिया। . विद्यार्थियोंका तो यह बाल्यविवाह पूर्ण शत्रु बन गया। यह

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