Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 99
________________ श्रीदशलक्षणधर्म । [१५ प्रशस्ति । ते इक मध्य प्रांनके मध्य जान । नरसिंहपुर ना कहो बखान ।। तह बने जनमंदिर विशाल । दर्शनसे मन हो खुशाल | नह में जनधी सुधीर । परवार वंध्य अति गुण गहीर ॥ तिन मांहि गण्य दग्यावलाल । सुत जये कुज मन नाथूलाल ।। पनि नागमके मुत गु चार । वर दीपचन्द्र जेठे कुमार ।। अफ कान्लाम छोटे मुलाल । भूपेन्द्र कुंवर सब ही खुशाल || निज मान मरण लख दीपचन्द्र । हा विरति धरे वन श्री जिनेन्द्र ।। श्रावक प्रतिमा सप्तम सुजान । मुन किमनदासके तृतीय मान ।। श्री मूलचन्द्र इन कही जाय । लिग्वियं दशधर्म स्वरूप माय ।। प्रतधारी जे नग्नारि हाय । पहि हैं व्रत दिवसीमें जु सोय ॥ यह सुन वर्णी धूप-युद्धि धार । संक्षिप्त कथन कर श्रुनाधार ॥ यह लिया लेग्य निज धी प्रमान ! नहिं ग्न्यानि लाभकी चाह आन। यह जैन धर्म आगम अपार । तामें दश लक्षण धर्म सार ।। ना अल्प वृद्धि चरणा बनाय । धजन शुध कीजे भूल पाय | मंबन श्री वीरजिनेश मार । चौविस सी चालिस शुभ सुधार ।। पपण बन दश धर्म सार । पूरन कीनो हित स्वपर धार । जो भविजन पढ़ि हैं चिन लगाय। अरु करि हैं व्रत मन वचन काय॥ सो लाह हैं मुर नर मुःख सार । अनुक्रम पावेंगे मुक्ति द्वार । तासे भी भविजन ! हृदय आन । व्रत पालो कथा पढ़ो सुजान ।। धारी धूप जिनवर कथित सार । ज्यों दीपचन्द्र भव लहो पार ।। । इति ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139