Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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ब्रवोद्यापन।
[१०९ वर कुलगर्व नीच कुलदाता।
वर कुलगर्व सुदुर्गति भ्राता ।। वर कुलगर्व सुधर्म निराकर।
वर कुलगर्व सुपाप भयंकर ॥ ५ ॥ ज्ञानगर्व मुनिवर विभासे।
वर उपदेश बोध सुविभासे ।। ज्ञानगर्व मूर्खपद पामे।
अक्षर अर्थ भाव पर वामे ॥६॥ वरतप विमल सुगति बहुसाधक ।
तपबल कर्मसमूह विवाधक ॥ मुनिवर जिनवर तप गुण धारक ।
। सुतप करोति कुधर्म विदारक ॥ ७॥ रीत भइ सह ससूर लक्षांकर ।
कोटीभट संख्या न विभाकर ।। धर्मवंत पाण्डव नर गुणधर।
सुतप गर्व नहिं कीधा मुनिवर ॥ ८॥ लक्ष्मीगर्व करीने गुत्ता।
पाप गर्व धरि ते नर भूत्ता॥ मान विमान कदानहि जाने।
मुनिवर वसुमद कदा न माने ॥ वर मार्दव साधे, दुख न वाधे, .
अभयचंद्र दयनन्दि वर।
घत्ता ।

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