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श्रीदशलक्षण धर्म इसप्रकार उत्तम क्षमा, मार्दव आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य इन दश धर्मोका संक्षिप्त वर्णन किया।
कह्यौ भाव दश धर्मको. 'दीप' युद्धि अनुसार । भूल चूक कछु होय तो, बुध जन लेहु सुधार ।।
श्री दशलक्षणधर्मके सवैये। पंच जिनेन्द्र धरूं मनमें जिस नाम लिये सब पातक भाजे । शारद मात प्रणाम करूँ जिस हस्त कमण्डलु पोथी विगजें ॥ गौतम पाय न मन शुद्ध सु अंग उपांग वखाणहि गाजे । सद्गुरुको उपदेश सुनो हम धर्म सदा दशलक्षण छाजे ॥१॥
(१) क्षमा। केवल एक क्षमा बिन ही तप संयम शील अकारथ जानो। पाक सुपाक बनो सुधरों जैसें नौंन विहीन अनाजको खानो । देव जिनेन्द्र कहे जगमें, जन तारणको यह वाहन जानो। 'ज्ञान' कहे नर अन्तर सूझत सार क्षमा दश लक्षण रानो ॥१२॥
(२) मार्दव। मार्दव भाव न आवत ज्योलग त्योलग धर्म कहां उपजावें । भाव कठोर रहे घट भीतर नूतन पाप संयोग बढ़ावें ॥ आरत रौद्र वसे उसके मन पापसे निश्चय दुर्गति पावें । 'ज्ञान' कहे. मृदुभावके धारक फेर कभी जगमाहिं न आवें ॥२॥