Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 57
________________ m उत्तम संयम 1. [५३ अर्थात्-विषय कपायोंका त्याग जहां होता है, वहीं उपवास है, शेप सब लंघनवत् कहा जाता है। इसलिये उान्तरङ्गसे ही विषयोंकी इच्छाको घटाते हुए तदनुसार बाहिर भी इद्रियोंको विषयोंसे रोका जाय, तभी वह संयम विशेष लाभदायक होसकता है। यह संयम देशसंयम और सकलसंयमके भेदसे भी दो प्रकारका होता है। सकलसंयम वह है जिससे यावज्जीव पांचों इन्द्रियों के विपयोंको, पटकायके जीवोंकी हिंसाको मन, वचन काय और कृतकारित अनुमोदनास सर्वथा त्याग कर दिया जाता है और देशसंयमें शक्ति अनुसार नियमरूपस तथा यमरूपसे इन्द्रियोंके विषयोंकी सीमा काली जाती है, संकल्प करके त्रस जीवोंकी हिंसाका यथायोग्य त्याग किया जाता है और फिर निरंतर उसे बढ़ाते हुए सकलसंयम तक पहुँचा दिया जाता है-अर्थात् देशसंयम भी सकलसंयमका साधनरूप ही होता है। साधु मुनियोंका सकल अर्थत् उत्तम संयम होता है, उसमें वे इन्द्रियोंके विषयोंको तो छोड़ते ही हैं, किन्तु उन विषयों के कारण हिंसा, झूट, चोरी, कुशील और परिग्रह इन पांचों पापोंका भी सर्वथा त्याग करते हैं और किसी प्रकारका इनमें दोप भी नहीं लगने देते, जिसके लिये ईर्या, भाषा, एपणा, आदाननिक्षेपण और व्युत्सर्ग ये पांच समिति; तथा मनवश, वचनवश और कायवश ये तीन गुप्तियां पालते हैं । उपसर्ग और परोपहादि भी सहन करते हैं। .. ... देशसंयम गृहस्थियोंका होता है, जिसमें वै यम, नियमों द्वारा अपनी इन्द्रियोंको वश करने तथा जीवोंकी यथासंभव दया पालनेका

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