Book Title: Dash Lakshan Dharm athwa Dash Dharm Dipak
Author(s): Deepchand Varni
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ Wrnment . ..".www.www.wmniwalMANYoews उत्तम आर्जव। [२५ जिस समय जीवके मन, वचन और काय ये तीनों योग वक्रतामायाचार रहित सरल होते हैं, अर्थात् जो कुछ मनमें विचार हो उसे ही वचनसे प्रकाश करना और वचनसे जो कुछ प्रकाश किया हो, वही कायसे करना इसीको आर्जव नाम आत्माका स्वभाव कहते हैं। किन्तु जिस समय यह जीव निज आत्मबुद्धि अर्थात् अपने आत्मामें ही आत्म भावनासे रहित हुआ, आत्मबुद्धि परपदार्थोंमें स्वात्म भाव धारण कर प्रवर्तता है, तभी यह अपने इच्छित मनोनुकूल विषयों वा कपायोंकी पुष्ट्यर्थ नाना प्रकारकी कुचेष्टाएं करता है। अर्थात् मनमें कुछ और विचारता है, वचनसे कुछ और प्रगट करता है तथा कायसे कुछ अन्य ही आचरण करता है। तब इसके अंतरंग भावोंका भेद, सिवाय केवलज्ञानी व मनःपर्ययज्ञानीके और कोई भी नहीं जान सकता। इसे ही अर्थात् ऐसे ही भावोंको माया कषाय कहते हैं। यद्यपि मायाचारी पुरुष प्रायः ऊपरसे मिष्ट भाषण करता है, सौम्य आकृति बनाता है, अपने आचरणोंसे लोगोंको विश्वास उत्पन्न कराता है और अपने प्रयोजन साधनार्थ विपक्षीकी भी हाँमें हाँ भी मिला देता है परन्तु अवसर पाते ही वह अपने मन जैसी कर लेता है। इसका स्वभाव ठीक बगुलेके सरीखा होता है-अर्थात् जैसे बगुला पानीमें एक पाँवमें खड़ा होकर नासादृष्टि लगाता है और मछली ज्यों ही उसके पास उसे साधु समझकर आती है त्यों ही वह छद्मभेषी झटसे उन्हें पकड़ कर भक्षण कर लेता है। कहावत है कि--- ___ उज्वल वर्ण गरीब गति, एक टांग मुख ध्यान । . देखत लागत भगतवत, निपट कपटंकी खान ॥१॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139