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सम्मान
___ डॉ० कोठियाने जो उल्लेखनीय समाज, साहित्य व धर्मकी सेवा की है उसके उपलक्ष्यमें उनका कई संस्थाओंके द्वारा सम्मान किया गया है । यथा
१. वीर निर्वाण भारती, नई दिल्लीके द्वारा उन्हें 'न्यायालंकार' इस मानद उपाधिके साथ २५०० के पुरस्कारपूर्वक स्वर्णपदक व प्रशस्तिपत्र (१९७४) ।
२. अखिल भारतीय भगवान् महावीर २५०० निर्वाण-महोत्सव-महासमिति द्वारा उन्हें स्वर्णपदक व प्रशस्तिपत्र (१९७४) ।
३. मूडविद्री दक्षिण (कर्नाटक) द्वारा न्यायरत्नाकर उपाधिपूर्वक अभिनन्दनपत्र (१९७५) । ४. द्रोणगिरि (म० प्र०) द्वारा न्यायवाचस्पति उपाधिके साथ मानपत्र (१९७७)।
५. उत्तर प्रदेश शासन द्वारा प्रमाणपरीक्षा ग्रन्थपर उन्हें १०००) रु० के पुरस्कार पूर्वक प्रशस्तिपत्र १९७९ दिया गया। इनके अतिरिक्त समय-समयपर जैन समाज हटा, टीकमगढ़, घौरा, दि० जैन नया मन्दिर शास्त्र-सभा, धर्मपुरा, दिल्ली, जैन सभा दरियागंज, दिल्ली, दि० जैन समाज, मदनगंज, किशनगढ़ और दि० जैन समाज कानपुर आदिके द्वारा भी उन्हें मानपत्र देकर सम्मानित किया गया है। १५. ग्रन्थ-सम्पादन व अनुवाद
१. अध्यात्मकमलमार्तण्ड , वीर-सेवा-मन्दिर, सरसावा (१९४४) । २. न्यायदीपिका (वीर-सेवा-मन्दिर, सरसावा (१९४५)। ३. आप्तपरीक्षा
(१९४९)। ४. श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र
(१९४९) । ५. शासनचतुस्त्रिशिका , , (१९४९) । ६. स्याद्वादसिद्धि , माणिकचन्द जैन ग्रंथमाला (१९५०)। ७. प्राकृतपद्यानुक्रम (वीर-सेवा-मन्दिर, सरसावा (१९५०) । ८. प्रमाणप्रेमयकलिका, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली (१९६१) । ९. समाधिमरणोत्साह दीपक (वीर-सेवा-मन्दिर-ट्रस्ट, वाराणसी (१९६४) । १०. द्रव्यसंग्रह (ग्र० वर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी (१९६६)। ११. जैन तर्कशास्त्रमें अनुमान-विचार (वीर-सेवा-मन्दिर-ट्रस्ट, वाराणसी) (१९६९) । १२. प्रमाणपरीक्षा, (वीर-सेवा-मंदिर ट्रस्ट, वाराणसी (१९७७)। १३. जैन दर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन, वीर-सेवा-मंदिर-ट्रस्ट -वाराणसी (१९८०)।
इनके अतिरिक्त देवागमस्तोत्र-आप्तमीमांसा व युक्त्यनुशासन जैसे ग्रंथोंपर विस्तृत एवं शोधपूर्ण प्रस्तावनाएं लिखीं। समय-समयपर शान्तिनिकेतन, पूना, जयपुर, जबलपुर, सागर आदिके विश्वविद्यालयों में आयोजित संगोष्ठियोंमें शोध निबंध पढ़े व व्याख्यान दिये हैं।
इस प्रकार डॉ० दरबारीलालजी कोठियाके द्वारा जो सेवा की गई है व की जा रही है उसका क्षेत्र शिक्षा, समाज, धर्म व साहित्य आदिके रूपमें व्यापक है ।
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