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वर्णीजीको आरम्भमें सिर्फ एक रुपया दानमें मिला था, जिसके ६४ पोस्टकार्ड खरीदकर उन्होंने ६४ जगह पत्र लिखे थे, फिर क्या था, वर्णीजोका आत्मा निर्मल एवं निस्पृह था और वाराणसी जैसे विद्याकेन्द्रमें एक जैन विद्यालयके लिए छटपटा रहा था, फलतः चारों ओरसे दानकी वर्षा हुई। आज इस विद्यालयको ५६ वर्ष हो गये और उसका ध्रौव्यकोष भी कई लाख है। यह एक निरीह सन्तका आशीर्वाद था। शान्तिनाथ दि० जैन विद्यालयको भी उनका आशीर्वाद ही नहीं, उनके करकमलोंसे स्थापित होनेका सौभाग्य प्राप्त है। मेरा विश्वास है कि इस विद्यालयका भी ध्रौव्यकोष आप लोग एक लाख अवश्य कर देंगे। तब वर्णीजीका स्वर्गमें विराजमान आत्मा अपने इस विद्यालयको हरा-भरा जानकर कितना प्रसन्न एवं आह्लादित न होगा।
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