Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 526
________________ क्षमा करते हैं । ऐसे आयोजनको 'क्षमापर्व' कहते हैं और वह भाद्र मासकी समाप्तिपर आश्विन कृष्ण १ को मनाया जाता है। इस दिन सभी श्रमणोपासक-गृहस्थ और श्रमणोपासिका-गृहस्थनी एक-दूसरेसे अपनी एक सालकी भूलोंके लिए क्षमा-याचना करते हैं और उस समय निम्न मार्मिक भाव-व्यक्त करते हैं खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंत मे। मित्ती मे सव्वभूदेसु वैरं मज्झं ण केणचिद ।। 'मैं समस्त जीवोंको क्षमा करता हूँ और वे मुझे क्षमा करें। समस्त जीवोंपर मेरा मैत्रीभाव है, किसीके साथ मेरा वैर नहीं है।' इस प्रकारसे क्षमाके वचन-वाणीका परस्पर में व्यवहार होनेसे इस 'क्षमा पर्व'को 'क्षमावाणी' पर्व तथा उस दिन क्ष माकी अवनी-भूमि स्वयं बनने-बनानेसे 'क्षमावनी' या 'क्षमावणी' पर्व भी कहते हैं । निःसन्देह यह पर्व वर्षोंसे या एक वर्ष के भरे हए मनके कालुष्य-मलको धो देता है और मित्रता एवं बन्तुत्वभावको स्थापित करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560