Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 550
________________ ४. 'संजद' पदके सम्बन्धमें अकलसूदेवका : शीर्षक बही, 'अनेकान्त', वर्ष ८, कि० २, जनवरी महत्त्वपूर्ण अभिमत . १९४६ । ५. ९३ वे सूत्रमें 'संजद' पदका सद्भाव : ९३ वे सूत्रमें 'संजद' पदका विरोध क्यों?, ‘अनेकान्त' वर्ष ८, कि० १०, सितम्बर, १९४६ ई० । ६. नियमसारकी ५३ वीं गाथा और उसकी : शीर्षक वही, 'वीर-वाणी', वर्ष ३५, अंक २, अक्टूबर व्याख्या एवं अर्थपर अनुचिन्तन १९८२, 'नियमसारकी ५३ वीं गाथाकी व्याख्या और अर्थ में भल' जैन सन्देश, १६ सितम्बर १९८२, जैन विद्वत्सं गोष्ठी बम्बईमें पठित, ७, ८ सितम्बर १९८२।। ७. अनुसन्धानमें पूर्वाग्रहमुक्ति आवश्यकः : अनुसन्धानमें पूर्वाग्रहमुक्ति आवश्यक, अनेकान्त, वर्ष ३४, कुछ प्रश्न और समाधान कि० ४, दरियागंज, नई दिल्ली, १९८१ । ८. गुणचन्द्र मुनि कौन है ? : शीर्षक वही, 'अनेकान्त', जनवरी १९५० । ९. कौन-सा कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र है ? : शीर्षक वही, 'अनेकान्त', वर्ष ८, कि०४-५, अप्रेल १९४६ । १०. गजपन्थ तीर्थ क्षेत्रका एक अति प्राचीन : शीर्षक वही, 'अनेकान्त', वर्ष ७, कि०, १९४५ । उल्लेख ११. अनुसन्धान विषयक महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर : शङ्का-समाधान, 'अनेकान्त', वर्ष ९, कि० १, ३, १९४८ । ११. आचार्य कुन्दकुन्द : आचार्य कुन्दकुन्दका प्राकृत वाङ्मय और उसकी देन, क्षु० चिदानन्द स्मृतिग्रन्थ, द्रोणगिर, वी० नि० २४९९ । १३. आचार्य गृद्धपिच्छ : तत्त्वार्थसूत्रकी परम्परा, जैन सिद्धान्त भास्कर, आरा, सन् १९४५ । १४. आचार्य समन्तभद्र : 'देवागम और समन्तभद्र', प्रस्तावना, वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट, वाराणसी, १९६७ (प्र० सं०), १९७८ (द्वि० सं०)। विविध १. बिहारकी महान् देन : तीर्थंकर महावीर : शीर्षक वही, मगध यूनिवर्सिटी और जैन समाज गया के और इन्द्रभूति संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित जैन विद्या संगोष्ठीमें पठित एवं उनके द्वारा प्रकाशित महावीर-जयन्ती स्मारिका में मुद्रित, सन् १९७५ । २. विद्वान् और समाज : अखिल भारतीय दि० जैन विद्वत्परिषद्के रजत-जयंती अधिवेशन शिवपुरीके अध्यक्षपदसे दिया गया अध्यक्षीय भाषण, फरवरी १९७३ । ३. हमारे सांस्कृतिक गौरवका प्रतीकः : श्री शान्तिनाथ दि० जैन विद्यालय, अहारके अध्यक्षपदसे अहार दिया गया अध्यक्षीय भाषण, दिसम्बर १९६६ । ४. आचार्य शान्तिसागरका ऐतिहासिक :शीर्षक वही, सम्पादकीय, जैन प्रचारक सल्लेखनांक, दिल्ली, समाधिमरण अगस्त १९५५ । ५. आदर्श तपस्वी आचार्य नमिसागर : आचार्य तपस्वी श्री १०८ आचार्य नमिसागरकी जीवन झाँकी, प्रकाशक जैन समाज, हिसार, दिसम्बर १९५२ तथा सम्पादकीय, जैन प्रचारक, नवम्बर १९५६, दिल्ली। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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