Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 554
________________ सजग प्रहरी .डॉ० महेन्द्र कुमार जैन डा० कोठिया सा० निरभिमानी, उदारचेता, कर्मठ, प्रकाण्ड विद्वान, समीक्षाकार, समाजके सजग प्रहरी, असंभवको संभव कर दिखाने वाले महामना है। बुन्देलखण्डके अविकसित एवं साधनहीन क्षेत्रमें भी जन्म लेकर आपने अपनी लेखनोसे साहित्य-क्षेत्रका महान उपकार किया है। इस सरस्वतीपुत्रको यदि इसी तरहके अनेक अभिनन्दन-ग्रन्थ समर्पित किये जायें, तभी 'न हि कृतमपकारं साधवो विस्मरन्ति' वाक्यकी पूर्ति हो सकेगी। __ मैं आपके शतायु होनेकी कामना करता हूँ। डॉ० कोठियाकी अप्रतिम सेवाएँ • सिंघई देवकुमार जैन, भारत पेट्रोलियम डीलर, कटनी, (म० प्र०) डा० दरबारीलालजी कोठिया, न्यायाचार्य वाराणसी जैन जगतके मान्य विद्वान हैं। उनकी अप्रतिम सेवाओंके मूल्यांकन हेतु अभिनन्दन-ग्रंथका प्रकाशन निश्चय ही सराहनीय कार्य है। वस्तुतः उनका अभिनन्दन साहित्यका अभिनन्दन है। अनेक क्लिष्ट, किन्तु महत्वपूर्ण ग्रन्थोंकी टीका, सम्पादन डा० कोठियाजीको तार्किक सझ-बझका स्वयं प्रमाण हैं। अखिल भारतीय स्तरकी अनेकों सामाजिक-धार्मिक संस्थाओंमें रहकर जो कीर्तिमान उन्होंने स्थापित किए हैं वे सर्वथा नूतन-सार्थक सिद्ध हुए हैं। डा० कोठियाजी शतायु हों तथा राष्ट्र-समाज सेवा अविच्छिन्नभावसे करते रहें, ऐसी वीरप्रभुसे कामना है। साधुमना श्री कोठियाजी श्रीमती विमला जैन, बी० ए०. बी०टी० आई, कटनी ___सहृदय, सरल-शान्त तथा शुद्ध-सात्विक वृत्तिके प्रकाण्ड विद्वान् पं० दरबारीलालजी कोठियाका अखिल भारतीय अभिनन्दन सिद्धक्षेत्र अहारजी (टीकमगढ़, म०प्र०) में होने जा रहा है, जो निश्चय ही एक स्वागतयोग्य बात है । डा० कोठियाजी जैन समाजको अमूल्य निधि हैं। उन्होंने शानदार शिक्षकीय जीवन में जैन-दर्शन साहित्यकी जो सेवाएँ की हैं वे प्रशंसनीय तो हैं ही, अनुकरणीय भी हैं। डा० कोठियाकी निश्छल मुस्कान उनके व्यक्तित्वको सदैव आकृष्ट करती है। न्यायाचार्य दरबारीलालजी कोठिया जैन समाजके ऐसे विद्वद्रत्न हैं, जिनपर समाजको पूर्ण गर्व है । मेरी उन्हें शुभ-कामनाएँ हैं । प्रगाढ़ विद्वत्ता और सौम्य व्यक्तित्वके धनी .श्री अजित प्रसाद जैन, लखनऊ ___ बन्धुवर डा० दरबारीलाल कोठियासे मेरा घनिष्ठ परिचय पिछले पाँच वर्षसे है। यों तो मेरे बड़े भाई डा० ज्योति प्रमादके किसी समयके सहयोगी रहनेके कारण उनसे परोक्ष-परिचय तो बहुत पहलेसे था, लेकिन प्रत्यक्ष-परिचय श्री दि० जैन अयोध्यातीर्थ क्षेत्रपर १९७७ में अयोजित पंचकल्याणकप्रतिष्ठाके अवसरपर ही हुआ । डाक्टर साहबकी प्रगाढ़ विद्वत्ता, सरल एवं सौम्य व्यक्तित्व, स्नेहपूर्ण निश्छल व्यवहार बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। डॉ० नोठिया जैसे मनीषियोंका अभिनन्दन करके समाज अपना ही अभिनंदन करती है । मैं डाक्टर साहबके शतायु होनेकी कामना करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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