Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 532
________________ जाओ, देखो, निग्गंठनातपुत्तकी सभामें स्त्रियाँ भी रहती हैं ? आनन्द जाता है और देखता है कि महावीरकी सभामें पुरुषोंसे कहीं अधिक स्त्रियाँ भी है और वे न केवल श्राविकाएँ ही हैं, भिक्षुणियाँ भी है और महावीरके निकट बैठकर उनका सदा उपदेश सुनती हैं व विहारके समय उनके साथ चलती है। इस सबको देखकर आनन्द बुद्धसे जाकर कहता है-भन्ते ! निगंठनातपुत्तकी विशाल सभामें अनेकों स्त्रियाँ, श्राविकाएँ और भिक्षुणियाँ हैं। बुद्ध कुछ क्षणों तक विस्मित होकर स्तब्ध हो जाते हैं और तुरन्त कह उठते हैं कि निग्गंठनातपत्त सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं। हमें भी स्त्रियोंको अपने संघमें लेना चाहिए। इसके बाद बद्ध स्त्रियोंको भी दीक्षा देने लगे। बुद्धकी इन दोनों बातोंसे स्पष्ट मालूम होता है कि महावीर अपने समकालीन बुद्ध जैसे प्रभावशाली धर्मप्रवर्तकपर भी अपना अप्रतिम प्रभाव डाल चुके थे । वास्तवमें बाह्य शत्रुविजेताकी अपेक्षा आत्मविकारविजेताका स्थान सर्वोपरि है। उसके आत्मामें अचिन्त्य शक्ति, अचिन्त्य ज्ञान और अचिन्त्य आनन्दका स्रोत निकल आता है । महावीरको भी यही स्रोत प्राप्त हो गया था । भ० 'महावीरने इसके लिये अनेक सिद्धान्त रचे और उन सबको जनताके लिए बताया। इन सिद्धान्तोंमें उनके दो मुख्य सिद्धान्त हैं—एक अहिंसा और दूसरा स्याद्वाद । अहिंसासे आचारकी शुद्धि और स्याद्वादसे विचारकी शुद्धि बतलाई । आचार-विचार जिसका जितना अधिक शुद्ध होगा-अनात्मासे आत्माको ओर बढ़ेगा वह उतना ही अधिक परमात्माके निकट पहुँचेगा। एक समय वह आयेगा जब वह स्वयं परमात्मा बन जायगा। महावीरने यह भी कहा कि जो इतने ऊँचे नहीं चढ़ सकते वह श्रावक रहकर न्याय-नीतिके साथ अपने कर्तव्योंका पालन कर स्वयं सुखी रहें तथा दूसरोंको भी सुखी बनानेका सदैव प्रयत्न करें। -४७५ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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