Book Title: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain
Publisher: Darbarilal Kothiya Abhinandan Granth Prakashan Samiti

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Page 482
________________ उनके उपदेशोंसे आत्मोद्धार किया, चन्दना जैसी सैकड़ों नारियोंने, जो समाजसे च्युत एवं बहिष्कृत थीं, महावीरकी शीतल छाया पाकर श्रेष्ठता एवं पूज्यता को प्राप्त किया। कुत्ते जैसी निन्द्य पर्याय में जन्मे पशुयोनिके जीवोंने भी उनकी देशनासे लाभ लिया। प्रथमानुयोग और श्रावकाचारके ग्रन्थोंमें ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिनसे स्पष्टतया महावीरके धर्मकी उदारता एवं विशालता अवगत होती है । तात्पर्य यह कि तत्कालीन बड़े-से-बड़े और छोटे-से-छोटे सभीको अधिकार था कि वे महावीरके उपदेशोंको सुनें, ग्रहण करें और उनपर चलकर आत्मकल्याण करें। चतुर्विध संघका गठन महावीरने समाजका गठन विल्कुल नये ढंगसे किया। उन्होंने उसे चार वर्गोंमें गठित किया । वे चार वर्ग हैं-१ श्रावक, २ श्राविका, ३ साधु ( मुनि ) और ४ साध्वी ( आर्यिका )। प्रत्येक वर्गका संचालन करने के लिए एक एक वर्गप्रमुख भी बनाया, जिसका दायित्व उस वर्गकी अभिवृद्धि, समुन्नति और उसका संचालन था । फलतः उनकी संघव्यवस्था बड़ी सुगठित ढंगसे चलती थी और आजतक वह चली आ रही है । तत्कालीन अन्य धर्म-प्रचारकोंने भी उनकी इस संघ-व्यवस्थासे लाभ लिया था। बुद्धने आरम्भमें स्त्रियोंको दीक्षा देना निषिद्ध कर दिया था। किन्तु णिग्गंथनातपुत्त महावीर की संघव्यवस्थाका आनन्दने जब बुद्ध के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया और स्त्रियोंको भी दीक्षा देने पर जोर दिया तो बद्धने उन्हें भी दीक्षित करना आरम्भ कर दिया था तथा उनके संघकी संघटना की थी। अन्तमें महावीरने मध्यमा पावासे मुक्ति-लाभ लिया । गौतम इन्द्रभूति इन्द्रभूति उस समयके महान् पंडित और वैदिक विद्वान् थे। जैन साहित्यमें जो और जैसा उल्लेख इनके विषयमें किया गया है उससे इनके महान व्यक्तित्वका परिचय मिलता है । __ आचार्य यतिवृषभ (विक्रमकी ५वीं शती ) के उल्लेखानुसार इन्द्रभूति निर्मल गौतम गोत्रमें पैदा हए थे और वे चारों वेदोंके पारगामी तथा विशद्ध शोलके धारक थे। धवला और जयधवला टीकाओंके रचयिता आचार्य वीरसेन ( विक्रमकी ९वीं शती) के अनुसार इन्द्रभूति क्षायोपशमिक चार निर्मल ज्ञानोंसे सम्पन्न थे । वर्णसे ब्राह्मण थे, गौतमगोत्री थे, सम्पूर्ण दुश्रुतियोंके पारंगत थे और जीव-अजीव विषयक सन्देह को लेकर वर्धमान तीर्थंकरके पादमूलमें पहुंचे थे। वीरसेनने इन्द्रभूतिके परिचय-विषयक एक प्राचीन गाथा भी उद्धृत की है। गाथामें पूर्वोक्त परिचय ही निबद्ध है । इतना उसमें विशेष कहा गया है कि वे ब्राह्मणोत्तम थे । १. विमले गोदमगोत्ते जादेणं इंदभूदिणामेणं । चउवेदपारगेणं सिस्सेण विसुद्धसीलेण ।। -ति० ५० १-७८ ".."खओवसम-जणिद-चउरमल-बुद्धि-संपण्णेण बम्हणेण गोदमगोत्तण सयल-दुस्सुदि-पारएण जीवाजीवविसय-संदेह-विणासणट्ठमुवगय-वड्ढमाण-पाद-मूलेण इंदभूदिणावहारिदो । ___ -धव० पु० १, पृ० ६४ ३. गोत्तण गोदमो विप्पो चाउव्वेय-सडंग वि । ___णामेण इंदभूति त्ति सोलवं बह्मणुत्तमो ॥ -वही, पु० १, पृ० ६५ -४२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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