Book Title: Dan Amrutmayi Parampara Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan View full book textPage 7
________________ ऐसे 'दान' धर्म के विषय में हमारे पुरखों ने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। कई शास्त्रों में इस विषय में भिन्न भिन्न तरीकों से प्ररूपण एवं प्रतिपादन किया है। इसके अनेक प्रकार बताये हैं। इसकी महिमा गाई है। दान देने वालों की कई कथाएं भी लिखी है। इन सब का यानी दानविषयक विविध बातों का संकलन इस ग्रन्थ में किया गया है। विविध ग्रन्थों में दान के बारे में जो कहा गया है, और विविध धर्मपरम्पराओं में जो दान की महिमा गाई गई है, उन सबका अवगाहन कर, उनमें से सार सार ग्रहण करके डॉ. प्रीतमबहेन ने यह संकलन किया है, और उन बातों को अपनी सरल, लोकभोग्य शैली में ढाल कर हमारे सामने पेश किया है। हिन्दी भाषा में किया गया यह संकलन व आलेखन अनेक जिज्ञासुओं के अतीव उपकारक सिद्ध होगा, इस में लेश भी शंका नहीं । एक प्रकार से, उनके द्वारा हुआ यह आलेखन व प्रकाशन भी, दानधर्म का ही एक स्वरूप है। उन्होंने स्वाध्याय किया, स्वाध्याय को शब्दस्थ भी किया, और जिज्ञासुओं को उन शब्दों का इस ग्रन्थ के रूप में दान-ज्ञानदान भी किया, एतदर्थ उन्हें साधुवाद देना चाहिए। साधुवाद देने के साथ ही मैं चाहूंगा कि उनकी यह स्वाध्याययात्रा अविरत चलती रहो, और उसके ऐसे ग्रन्थ-फल भी जिज्ञासु जनों को मिलते रहो!। माघ शुदि १, २०६८, नन्दनवनतीर्थ - शीलचन्द्रविजयPage Navigation
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