Book Title: Chitta Samadhi Jain Yog Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 12
________________ आयारो प्रेक्षा-ध्यान आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणइ, उड्ढं भागं जाणइ, तिरियं भागं जाणइ ।। २/१२५ अण्णहा णं पासए परिहरेज्जा ।' २/११८ एस मग्गे आरिएहिं पवेइए । २/११६ जहेत्थ कुसले णोवलिंपिज्जासि त्ति बेमि । २/१२० जे अणण्णदंसी, से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे, से अणण् गदंसी । २/१७३ जे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति मन्नेसी ।। ५/२१ जस्सिमे सदा य रूवा य गंधा य रसा य फासा य अभिसमन्नागया भवंति, से प्रायवं नाणवं वेयवं धम्मवंबंभवं । ३/४ तम्हा तिविज्जो परमंति णच्वा, पायंकदंसी ण करेति पावं । ३/३३ अग्गं च मूलं च विगिच धीरे ।' ३/३४ एस मरणा पमुच्चइ । ३/३६ से हु दिट्ठपहे मुगी । ३,३७ लोयंसी परमदंसी विवित्तजीवी उबसंते, समिते सहिते सया जए कालखी परिवए। ३/३८ आगति गतिं परिणाय, दोहिं वि अंहिं प्रदिस्पमाणे । से ण छिज्जइ ण भिज्जइ ण डज्मइ, ण हम्मइ कंचणं सवलोए । ३/५८ अवरेण पुध्वं ण सरंति एगे, किमस्सतीतं ? किं वागमिस्सं ? भासंति एगे इह माणवा उ, जमस्सतीतं प्रागमिस्सं ।10 ३/५६ णातीतमट्ठण य प्रागमिस्स, अळं नियच्छंति तहागया उ । विधत-कप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवगे महेसी ।11 ३/६० का अरई ? के आणंदे ? एत्थंपि अग्गहे चरे । सव्व हासं परिच्चज्ज, आलीण-गुत्तो परिव्वए ।। ३/६१ किमत्थि उवाही पासगस्स ण विज्जइ ? णत्थि । -त्ति बेमि । ३/८७ एतदेवेगेसि महब्भयं भवति, लोगवित्तं च णं उवेहाए ।12 ५/३२ एए संगे अविजाणतो । ५/३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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