Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 495
________________ |४७४ चिंतन की मनोभूमि इतने महान् बन जाएँ कि अपने परिवार और दूसरों को भी समान भाव से दे सकें और सुख-दुःख में समान भाव से सेवा कर सकें; तो परिवारों के झगड़े, जो विराट रूप ले लेते हैं, न ले सकें और न किसी प्रकार के संघर्ष का अवसर ही आ सके। नारी की आदर्श दानशीलता : यहाँ इतिहास की एक घटना याद आ जाती है, एक महान् नारी की महान् उदारता की। उसका नाम आज किसी को याद नहीं है, किन्तु उसकी जीवन-ज्योति हमारे सामने बरबस खड़ी हो जाती है। ___भारत में बड़े-बड़े दार्शनिक कवियों ने जन्म लिया है। संस्कृत भाषा के ज्ञाता यह जानते हैं कि संस्कृत साहित्य में माघ कवि का स्थान कितना महत्त्वपूर्ण है ! माघ कवि भारत के गिने-चुने कवियों में से एक माने जाते हैं और उनकी कविता की भाँति उनकी जीवन-गाथा भी समान रूप से मूल्यवान है। कविता की बदौलत लाखों का धन आता, किन्तु माघ का यह हाल कि इधर आया और उधर दे दिया! अपनी उदारवृत्ति के कारण वह जीवन भर गरीब ही बने रहे। कभी-कभी तो ऐसी स्थिति भी आ जाती कि आज तो खाने को है, किन्तु कल का क्या होगा ? पता नहीं! कभी-कभी तो उन्हें भूखा ही रहना पड़ता। किन्त, उस माई के लाल ने जो कुछ भी प्राप्त किया—यदि सोने का सिंहासन भी पाया तो उसे भी देने से इन्कार नहीं किया। उसने कहा कि 'माघ का महत्त्व पाने में नहीं, देने में है।' __ एक बार वह अपनी बैठक में बैठे थे। जेठ की कड़कड़ाती हुई गर्मी में, दोपहर के समय, एक गरीब ब्राह्मण उनके पास आया। उस समय वह महान् कवि अपनी कविता के छन्द-भाव को ठीक करने में लीन थे। ज्योंही वह ब्राह्मण आया और नमस्कार करके सामने खड़ा हुआ कि इनकी दृष्टि उसकी दीनता को भेद गई। उसके चेहरे पर गरीबी की छाया पड़ रही थी और थकावट तथा परेशानी स्पष्ट झलक रही थी। कवि ने ब्राह्मण से पूछा-क्यों भैया! इस धुप में आने का कैसे कष्ट किया? ब्राह्मण-जी, और तो कोई बात नहीं है, एक आशा लेकर आपके पास आया हूँ। मेरे यहाँ एक कन्या है। वह जवान हो गई है। उसके विवाह की व्यवस्था करनी है; किन्तु साधन कुछ भी नहीं है। अर्थाभाव के कारण मैं बहुत उद्विग्न हूँ। आपका नाम सुनकर बड़ी दूर से चला आ रहा हूँ। आपकी कृपा से उस कन्या का भाग्य बन जाए, यही याचना है। माघ कवि ब्राह्मण की दीनता को देखकर विचार में डूब गये। उनका विचार में पड़ जाना स्वाभाविक ही था, क्योंकि उस समय उनके पास एक शाम खाने को भी कुछ नहीं बचा था। परन्तु एक गरीब ब्राह्मण आशा लेकर आया है ! अतः कवि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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