Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 546
________________ जैन-दर्शन में सप्त भंगीवाद ५२५) बोधक-वचन को सकलादेश और उसके किसी एक धर्म के बोधक-वचन को विकलादेश कहते हैं। जैन-दर्शन में वस्तु को अनन्त धर्मात्मक माना गया है। वस्तु की परिभाषा इस प्रकार की है. जिसमें गुण और पर्याय रहते हैं, वह वस्तु है।"२ तत्त्व, पदार्थ और द्रव्य–ये वस्तु के पर्यायवाची शब्द हैं। सप्त भंगी की परिभाषा करते हुए कहा गया है, कि "प्रश्न उठने पर एक वस्तु में अविरोध-भाव से जो एक धर्म-विषयक विधि और निषेध की कल्पना की जाती है, उसे सप्त भंगी कहा जाता है।''३ भंग सात ही क्यों हैं ? क्योंकि वस्तु का एक धर्म-सम्बन्धी प्रश्न सात ही प्रकार से किया जा सकता है। प्रश्न सात ही प्रकार का क्यों होता है ? क्योंकि जिज्ञासा सात ही प्रकार से होती है। जिज्ञासा सात ही प्रकार से क्यों होती है ? क्योंकि संशय सात ही प्रकार से होता है। अतः किसी भी एक वस्तु के किसी भी एक धर्म के विषय में सात ही भंग होने से इसे सप्त भंगी कहा गया है। गणित शास्त्र के नियमानुसार भी मूल वचनों के संयोगी एवं असंयोगी अपुनरुक्त भंग सात ही हो सकते हैं, कम और अधिक नहीं। तीन असंयोगी मूल भंग, तीन द्विसंयोगी भंग और एक त्रिसंयोगी भंग। भंग का अर्थ है—विकल्प, प्रकार और भेद। सप्त भंगी और अनेकान्त : वस्तु का अनेकान्तत्व और तत्प्रतिपादक भाषा की निर्दोष पद्धति स्याद्वाद, मूलतः सप्त भंगी में सन्निहित हैं। अनेकान्त दृष्टि का फलितार्थ है, कि प्रत्येक वस्तुं में सामान्य रूप से और विशेष रूप से, भिन्नता की दृष्टि से और अभिन्नता की दृष्टि से, नित्यत्व की अपेक्षा से और अनित्यत्व की अपेक्षा से तथा सद्प से और असद्प से अनन्त धर्म होते हैं। संक्षेप में "प्रत्येक धर्म अपने प्रतिपक्षी धर्म के साथ वस्तु में रहता है"-यह परिबोध अनेकान्त दृष्टि का प्रयोजन है। अनेकान्त स्वार्थाधगम है प्रमाणात्मक श्रुतज्ञान है। परन्तु सप्त भंगी की उपयोगिता इस बात में है, कि वह वस्तुगत अनेक अथवा अनन्त धर्मों की निर्दोष भाषा में अपेक्षा बताए, योग्य अभिव्यक्ति कराए। उक्त चर्चा का सारांश यह है कि अनेकान्त अनन्त-धर्मात्मक वस्तु स्वरूप की एक दृष्टि है, और स्याद्वाद अर्थात् सप्त भंगी उस मूल ज्ञानात्मक दृष्टि को अभिव्यक्त करने की अपेक्षा-सूचिका एक वचन-पद्धति है। अनेकान्त एक लक्ष्य है, एक वाच्य है और सप्त भंगी स्याद्वाद एक साधन है, एक वाचक है, उसे समझने का एक प्रकार है। अनेकान्त का क्षेत्र व्यापक है, जब कि स्याद्वाद का १. अनन्त धर्मात्मक मेव तत्त्वम्-अन्ययोग व्यवच्छेदिका, का. २२ २. वसन्ति गुण-पर्याया अस्मिन्निति वस्तु-धर्माधर्माऽऽकाश-पुद्गल-काल जीवलक्षणं द्रव्य- षट्कम्। –स्याद्वाद मंजरी, कारिका, २३ टीका ३. प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि-प्रतिषेध विकल्पना सप्तभनी।। -तत्त्वार्थ राजवार्तिक १,६,५? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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