Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 544
________________ विश्वकल्याण का चिरंतन पथ : सेवा का पथ ५२३ अपने अन्दर में भी देखना है। जीवन में देखना है, जन-जीवन में देखना है, जनार्दन की सेवा को जन सेवा में बदलना है। देश में आज कही दुर्भिक्ष की स्थिति चल रही है, दुष्काल की काली घटा छाई हुई दीख रही है, कहीं बाढ़ और तूफान उफन रहे हैं, तो कहीं महँगाई आसमान छू रही है। पर सच बात तो यह है कि अन्न की महँगाई उतनी नहीं बढ़ी है, जितनी महँगाई सद्भावनाओं की हो गई है। आज महँगा है, तो सद्भाव, प्रेम और सेवा भाव महँगा हो रहा है। एक-दूसरे की हितचिंता महँगी हो रही है। इन्हीं चीजों का दुष्काल अधिक हो रहा है। स्वार्थ, अहंकार आज खुलकर खेल रहे हैं और जीवन में, परिवार में, समाज और देश में नित नए संकट के शूल बिछाए जा रहे हैं। मैंने जो आपसे पहले बताया है कि यह मानव जीवन सुखों की भी महान्तम ऊँचाई पर पहुँच सकता है, और दुःखों के गहन गर्त में भी जाकर गिर सकता है। उसके सुख:दुःख स्वयं उसी पर निर्भर हैं। जब वह अपने अन्तर में से स्वार्थ और अहंकार को बाहर निकालकर अपने अंदर सेवा की भावना भरकर कार्य करना आरम्भ कर देता है, तब निश्चय ही विश्व कल्याण का पावन पथ प्रशस्त हो सकता है और, यही आज के संघर्षरत एवं समस्या ग्रस्त विश्व के कल्याण का सहज सुलभ मार्ग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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