Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 560
________________ जैन-दर्शन में सप्त भंगीवाद ५३९ का निराकरण करने वाला मिथ्या एकान्त है; अर्थात् नय सम्यग् एकान्त है और दुर्नय मिथ्या एकान्त है। जैन-दर्शन का यह अनेकान्तरूप ज्योतिर्मय नक्षत्र मात्र दार्शनिक चर्चा के 'क्षितिज पर ही चमकता नहीं रहा है। उसके दिव्य आलोक से मानव-जीवन की प्रत्येक छोटी-बड़ी साधना प्रकाशमान है। छेद सूत्र, मूल, उनकी चूर्णियाँ और उनके भाष्यों में उत्सर्ग और अपवाद के माध्यम से साध्वाचार का जो सूक्ष्म तत्वस्पर्शी चिन्तन किया गया है, उसके मूल में सर्वत्र अनेकान्त और स्याद्वाद का ही स्वर मुखर है। किं बहुना, जैन-दर्शन में वस्तु स्वरूप का प्रतिपादन सर्वत्र अनेकान्त और स्याद्वाद के माध्यम से ही हुआ है, जो अपने आप में सदा सर्वथा परिपूर्ण है। यह वाद व्यक्ति, देश और काल से अबाधित है, अतएव अनेकान्त विश्व का अजर, अमर, शाश्वत और सर्वव्यापी सिद्धान्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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