Book Title: Chintan ki Manobhumi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 549
________________ ५२८ चिंतन की मनोभूमि है कि घट कथंचित नहीं है। घट भिन्न पटादि की, पर-चतुष्टय की अपेक्षा से नहीं है। स्व-रूपेण ही सदा स्व है, पर-रूपेण नहीं। तृतीय भंग : स्याद् अस्ति नास्ति घट : जहाँ प्रथम समय में विधि की और द्वितीय समय में निषेध की क्रमशः विवक्षा की जाती है, वहाँ तीसरा भंग होता है। इसमें स्व की अपेक्षा सत्ता का और पर की अपेक्षा असत्ता का एक साथ, किन्तु क्रमशः कथन किया गया है। प्रथम और द्वितीय भंग विधि एवं निषेध का स्वतन्त्र रूप से पृथक्-पृथक् प्रतिपादन करते हैं, जब कि तृतीय भंग एक साथ, किन्तु क्रमशः विधि-निषेध का उल्लेख करता है। चतुर्थ भंग : स्याद् अवक्तव्य घट: जब घटास्तित्व के विधि और निषेध दोनों की युगपत् अर्थात् एक समय में विवक्षा होती है, तब दोनों को एककालावच्छेदेन एक साथ अक्रमशः बताने वाला कोई शब्द न होने से घट को अवक्तव्य कहा जाता है। शब्द की शक्ति सीमित है। जब हम वस्तुगत किसी भी धर्म की विधि का उल्लेख करते हैं, तो उसका निषेध रह जाता है, और जब निषेध कहते हैं तो विधि रह जाती है। यदि विधि-निषेध का पृथक्-पृथक् या क्रमशः एक साथ प्रतिपादन करना हो तो प्रथम के तीन भंगों में यथाक्रम 'अस्ति','नास्ति' और अस्ति-नास्ति शब्दों के द्वारा काम चल सकता है, परन्तु विधि-निषेध की युगपद् वक्तव्यता में कठिनाई है, जिसे अवक्तव्य शब्द के द्वारा हल किया गया है। स्याद् अवक्तव्य भंग बताता है कि घट-वक्तव्यता क्रम में ही होती है, युगपद् में नहीं। स्याद् अवक्तव्य भंग एक और ध्वनि भी देता है। वह यह कि घट के युगपद् अस्तित्व नास्तित्व का वाचक कोई शब्द नहीं है, अतः विधि-निषेध का युगपत्त्व अवक्तत्त्व है। परन्तु वह अवक्तव्यत्त्व सर्वथा सर्वतो भावेन नहीं है। यदि सर्वथा सर्वतो भावेन अवक्तव्यत्व माना जाए, तो एकान्त अवक्तव्यत्व का दोष उपस्थित होता है, जो जैन-दर्शन में मिथ्या होने से मान्य नहीं है। अतः स्याद् अवक्तव्य सूचित करता है कि यद्यपि विधि निषेध का युगपत्त्व विधि या निषेध शब्द से वक्तव्य नहीं है, अवक्तव्य है, परन्तु वह अवक्तव्य सर्वथा अवक्तव्य नहीं है, 'अवक्तव्य' शब्द के द्वारा तो वह युगपत्त्व वक्तत्त्व ही है। पञ्चम भंग : स्याद् अस्ति अवक्तव्य घट : यहाँ पर प्रथम समय में विधि और द्वितीय समय में युगपत् विधि निषेध की विवक्षा करने से घट को स्याद् अस्ति अवक्तव्य कहा गया है। इसमें प्रथमांश अस्ति स्वरूपेण घट की सत्ता का कथन करता है और द्वितीय अवक्तव्य अंश युगपत् विधिनिषेध का प्रतिपादन करता है। पंचम भंग का अर्थ है-घट है, और अवक्तव्य भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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