Book Title: Charitra Shuddhi Vrat
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Jain Mahila Samaj Delhi

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Page 5
________________ बारह सौ चौंतिससार, प्रोषध सुख कारी। मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सं चौतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने जल निर्वपामिति स्वाहा । मलयागिरि चन्दन सार, केशर रंग भरी। प्रभु भव आताप निवार, यह बिनती हमरी ।। बारह सौ चौतिससार. प्रोषध सुख कारी। मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी ।। .......: ॐही अशानशा लोन सहित पद इत्यारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्टिने चन्दन निर्वपामिति स्वाहा। ले चन्द्र किरण समशुद्ध, अक्षत शुचि सारे। तसु पुंज धरूं अवरुद्ध, तुम पग तल धारे।। बारह सौ चौंतिससार, प्रोषध सुख कारी । मैं पूजों विविध प्रकार. आतम हितकारी ।। ॐ हीं अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद् गुण सहिताय बारह सौ चौंतीस शुद्ध चारित्र व्रत मंडिताय अर्हन्त परमेष्ठिने अक्षतम निर्वपामिति स्वाहा। सुरततरु के सुमन समेत. अलि गुंजार करें। मैं जजू चरण, निज हेतु, मद गद व्याघ हरे।। बारह सौ चौतिससार. प्रोषध सुख कारी। मैं पूजों विविध प्रकार, आतम हितकारी।। ॐ ही अष्टदश दोष रहित षट् चत्वारिंशद गुण सहिताय बारह सौ !

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