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ब्रह्मचर्य पालन के उपवास नदेव-चित्र-तिर्यक स्त्रीरूपैः पंचेन्द्रि याहतैः ।
नवध्नै ब्रह्मचर्येः स्युः शतं तेऽशीतिमिश्रतम् ।।१०३ ।। ब्रह्मचर्य भंग चार प्रकार की स्त्रियों से होता है अर्थात् मनुष्य स्त्री. देवांगना, अचेतन स्त्री (पुलती या फोटो) और तिर्यच स्त्री (गाय घोडी आदि !) इन चारों से पंचेन्द्रिय भोग भोगना कुशील है। इनके परिहार से ब्रह्मचर्य पालन होता है। अतः ४ x ५ =२० और इनका नव कोटि से त्याग करना २० x ६= १८० भेद रूप त्याग कहलाता है। इस हेतू ब्रह्मचर्य महाव्रत में 40 उपवास और इतने ही पारणा होते हैं।
परिग्रहत्याग महाव्रत के उपवास चतुः कषाया नव नोकषाया मिथ्यात्वमेते द्विचतुः पदे च क्षेत्रं च धान्यं च हि कपाभाण्ड़े धनं च यानं शयनासनं च ।। १०४ ।। अंतर्बहिर्भेदपरिग्रहास्ते रंधैश्रतुर्विशतिराहतास्तु । ते ट्वे शते षोडश संयुते स्यु. महाव्रते स्यादुपवासभेदाः ।। १०५ | 1
परिग्रहं अतरंग और बहिरंग भेद से दो प्रकार का बतलाया गया । है। उनमें अंतरंग परिग्रह चौदह प्रकार 1 है- चार क्रोधादिकषाय.
हास्यादि नोकषाय और एक मिथ्यात्व इस प्रकार कुल १४ अतरग प्ररिग्रह हैं । बहिरंग परिग्रह के दस भेद होते हैं उनमें-द्विपद (दास दासी स्त्री इत्यादि) चतुष्पद (गाय घोडा बैल इत्यादि) खेत, धान्य, कुप्य (कपडे) भाण्ड (बरतन) धन (रुपया पैसा) यान (सवारी) शयन (पलंग आदि) आसन ये दस भेद ओर उक्त १४ भेद मिलकर २४ प्रकार का परिग्रह होता है इनकः मन, वचन, काय, कृत, कारित और अनुमोदना रूप नव कोटि से करना चाहिए। इस अभिप्राय को लेकर परिग्रह महारत्त के
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