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विधि-चारित्रशुद्धि
चारित्र तेरह प्रकार का आचार्यों ने माना है। । महाव्रत:- अहिं सा महाव्रत. सत्यमहाव्रत, अचौर्य महात. बहाया
महाव्रत. परिग्रहत्याग महाव्रत । पांच समिति- ईर्ष्या समिति, भाषण समिति, एषणा समिति. आदान
निक्षेप समिति और प्रतिष्ठापन समिति। तीन गुप्ति- मनो गुप्ति, वचन गुप्ति और कायगुप्ति
इनमें सर्व प्रथम अहिंसा महाव्रत के उपवासों को आचा" श्री कहते हैं
चतुर्दशस्वहिसार्थ जीव--स्थानेषु भाविताः ।
त्रियोगनवकोटिनेस्ते षड्विंशं शतस्फुटम् ।।१०७ ।। (१) एकेंद्रिय बादर (२) एकेन्द्रियसूक्ष्म (३ द्विइद्रिय (४) तीन इंद्रिय (५) चतुरिद्रिय (६) पंचन्द्रिय असंही र पंचेन्द्रिय संजी इन सातों को पर्याप्त और अपर्याप्त से गुणा करने पर कुल १५ जीव समास के भेद होते हैं अर्थात् इन १४ स्थलों में जीव पाये जाते हैं इनकी (१) अपने मन से हिंसा न करना (२) दूसरे से हिंसा न कराना और (३) करते हुए की अनुमोदना न करना ।
(१) स्वयं अपने बचन से हिंसा नहीं करना और, (२) दूसरों के वचनों से हिंसा नहीं करना. (३) करते हुए अनुमोदना नहीं कराना. (१) स्वयं अपने शरीर से इनकी हिंसा नहीं करना । (२) दूसरे के शरीर से हिंसा नहीं कराना । (३) एवम करते हुए की शरीर से अनुमोदना नहीं करना । इस प्रकार १४ जांच स्थानों (जीव समारस) का नव कोटि से त्याग करने पर १२६ भेद (१४ x ६=१२६)
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