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एषणा समिति में उद्ामादि ४६ दोषों को मन, वचन, काय, कृत, कारित और अनुमोदना इन नव कोटियों से त्याग करना कहा है। ४६ दोष-- १ धात्री दोष र दूत दोष ३ निमित्त दोष ४ आजीवन दोष. ५ वनीषक दोष ६ चिकित्सा दोष ७ क्रोधदोष - मान दोष, ६ माया दोष १० लोभ दोष ११ पूर्व स्तुति दोष १२ पश्चात् स्तुति दोष १३ विद्या दोष १४ मंत्र दोष १५ चित्रयोगदोष १६ मूलक्रम दोष १७ शंकित दोष १८ मुक्षित दोष [ १६ निक्षिप्त दोष २० पिहित दोष २१ व्यवहरण दोष २२ दायक दोष २३ उन्मिश्रदोष २४ अपरिणत दोष २५ लिप्त दोष २६ छोटित दोष २७ औद्देशिक दोष २८ साधित दोष २६ पति दोष ३० प्राभृतक दोष ३१ मिश्रदोष ३२ बलिदोष ३३ न्यस्तदोष ३४ प्रादुष्कृत्त दोष ३५ क्रीत दोष ३६ प्राभित्य दोष ३७ परिवर्तितदोष ३८ निषिद्धदोष ३६ अभिहृत दोष ४० उदिन्न दोष ४१ उच्छेद्य दोष ४२ माला दोष ४३ अंगार दोष ४४ धूम्र दोष ४५ संयोजना ४६ प्रमाणातिक्रम दोष, इनको नव कोटि से त्याग करने पर ४६x६=४१४ भेद रूप ४१४ उपवास तथा इतने ही पारण होते हैं।
तीन गुप्ति पालनार्थ उपवास गुपित तीन के भेद होते है- मनोगुप्ति. वचन गुप्ति, काय गुप्ति इन तीन गुप्तियों को उक्त नव कोटि री पालना चाहिए। इसके हेतु ३४६-२७ उपवास और इतने ही परणा होते हैं।
उक्त प्रयोदश चारित्र का पूर्णतया पालन रात्रि मुक्ति त्याग से होता है । अत. चारित्र शुद्धि अधिकार में रात्रि भोजन त्याग को भी नहीं भूलना चाहिए । अत इसके लिए आचार्यों ने १० उपवास बतलायें है अर्थात् रात्रि भोजन त्याग का एक भेद इसको नव कोटि से गुणा करने पर ६ भेद व अनिच्छा भेद भी सम्मिलित है। इस प्रकार १० उपवास व १० पारणे होते हैं।