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विधि
प्रथम उपवास प्रथम पारणा. द्वितीय उपवास द्वितीय पारणा तीसरा उपवास तीसरा पारणा, इस प्रकार आगे-आगे करते रहने से यह व्रत ६ वर्ष १० महीने और ८ दिन में पूर्ण होता है और महीने में १० उपवास करने पर १० वर्ष ३ माह १५ दिन में पूर्ण होते हैं।
कदाचित ऐसी शक्ति न हो तो बीच-बीच में भी उपवास किये जा सकते हैं और २५-३० वर्ष से समाप्त किये जा सकते हैं पर उपवासों की संख्या कुल १२३४ होने चाहिए।
जो महापुरुष इस व्रत को निरतिचार पालन करता है उसके १३ प्रकार का निर्मल चारित्र पलता है। इस व्रत का विधान हरिदशपुराण के ३४३ सर्ग लिया गया है।