Book Title: Charitra Shuddhi Vrat
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Jain Mahila Samaj Delhi

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Page 13
________________ राजा हेमवरण परवीन, रानी शिवसुंदरी गुन धीर! • एक समय नृप वन को जाय, चारण मुनि देखे सुखपाय ।।१०।। गुनजय वरजय नाम जतीश, राति दिवस ध्याय जगदीश नमस्कार नृप नै तब करौ, समता भाव चित्त में धरौ । ११ ।। हे गुरु मो पर कृपा करेउ, व्रत जु एक मोकू तुम देउ । जासौं पद तीर्थकर पाय, अंतकाल सो शिवपुर जाई ।।१२।। तब भाषी गुरु कृपा निधान, भादव मास से करौ विधान | साहिलो बन पड़वा में लीनै: बारह से चौतीस करीजे ।।१३।। जब व्रत पूरन होई महान उद्यापन विधि सुनौ सुजान। झारी थाली कलशा लेउ. सो जिनके चैत्यालय देउ ।।१४।। करो रकेवी चौसठ सार, मूढा जाय एक दे धार। लाडू बारह सौ चौतीस, दीजो श्रावक को गुन धीस ।।१५।। दूध धीउ दधिरा देउ, तातै जनम सफल करि लेउ ! दश वरषै जु मास धरितीन, ता पर आधो पक्ष सुलीन ।।१६।। अथया एकान्तर जो करें, पांच वरस में निश्रय भरै। पौने दो मास अधिकाय, ऐसो व्रत करियै गुन ज्ञान ।।१७।। जह व्रत सुनि गुरु के मुख सोई, नृप परम आनंदो लेइ । लीनी व्रत रानी अरु राय: तामै भाव भये अधिकाय ! |१८ || राजा नै व्रत पूरै करौ. उद्यापन विधि पूरव धरौ। अंत अवस्था धरि संन्यास, अच्युतेन्द्र पद पायौ जासु ।। १६|| बाईस सागर आयु जु धरी, तहां के सुख भुगतै गुनभरी। अंत देव सौ भयौ निदान, क्षेत्र विदेह महा सुखदान ।।२०।। नगरी विजिया पुरी है एक, जैन धरम की जातै टेक। राजा तहां धनुजय लहौ, रानी सौमश्री सुख रहौ ।।२१।।

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