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ताकै देय लियौ अवतार, तीर्थकर पद पायो सार । चंद्रभानप्रभ तिन को नाम पंच कल्याणक है गुणठाम । ।२२ ।। केवलि लहि प्रभु मुक्तिहि गयो, सिद्धसु जुक्ति निरंजनभयो । एसौ यह तं जानो भव्य, पाल शिवपुर गया।२३।। राजा श्रेणिक ने व्रतलियो, भाव सहित संपूरण कियौ । शिवसुन्दरी रानी व्रतलियौ, सोलह स्वर्ग देवता भयौ । ।२४।। नरनारी जा व्रत को करे, ते तीर्थकर पदवी धरै। जह व्रत करो भविक मनलाय, सो शिवपुर पदवीको पाई।।२५।। कथा कोश में बहु भाषी आई, तामै ते यह कथा बनाई। जैसी विधि गुरुनै कही, तैसी कथा कोश में लही । १२६ ।। संवत अठारह से बाईस. ता पै रचौ महा गुणईश। सहारपुर गुनह निधान, सब श्रावक जे सुनै पुरान ।।२७ ।। मूलसघ सरस्वती गच्छ, ऐसौ निश्रय जानो वच्छ। पद गुआलि अरु मुनि २ भयौ, भट्टारक पद तिनकौठयो । २८ ।। विश्वभूषण पद जजु महान. जिनेन्द्रभूषण यह रचौ महान । भूले अक्षर लेहु संभार. गुणी पुरुष तुमको यह भार ।।२६ ।।