Book Title: Charitra Shuddhi Vrat
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Jain Mahila Samaj Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अथ चारित्र शुद्धि व्रत (बारह से चौतीस) व्रत कथा रचियता- श्री जिनेन्द्र भूषणजी भट्टारक। बंदौं श्री अरहंत को, व कर शीस नमाय ।। बारह से चौतीस व्रत, करौ भव्य मन लाय ।।१।। जम्बूद्वीप दीपन में सार, भरत क्षेत्र तहाँ कही अपार। मगध देश देशन में बनी. राजगृह नगरी तहा बनी ।।२।। सजा श्रेणिक राज करत, पटारानी चेलना महत । एक समय मिलाचल . श्रीम.. बर्द्धमान आदो गंभीर ! ५३ ।। छह ऋतु के फल देखौ राई, वनमाली ने भाषी आई। वंदन गये राइ गुनमान. वीरनाथ स्वामी भगवान।।४।। नर कोठा नृप बैठन लग्यौ, मानो भव अंजुलि उन दयौ ।। तब नृप बोले मस्तक नाय, मो सौ बात कही समझाय ||५|| सोलह कारण प्रत घिन करो, तीर्थकर पद क्यौं कारे धरौं । तब बोले गौतम विहसाय. सुनि नृप कहौ महागुणगाई।।६।। बारह से चौतीसा नाम, ता व्रत करि तीर्थंकर पद पाई। ता व्रत करै महाफल होई, तो सौ भाषत ही अब सोई।। ७ ।। किन व्रत करो कौन फल आय.. कैसी विधि सौं व्रत कराय। मैं सौ सब भाषो मगधेश, तो सौं कहीं धरम को वेस | |- || जम्बूद्वीप सुदर्शन मेरु. लवणोदधि फेरौ चहुँ ओर । तामै देश अवंति वसै. उज्जैनी नगरी सख लैस ।।६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 161