Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 13
________________ विषय द्वितीय महाय (द्वितीय महाव्रत स्वरूप एवं आराधना ) ४२०-४३५ २८६-२६६ द्वितीय महाव्रत के आराधना की प्रतिज्ञा बिरमण मृषावाद की पांच भावना महाव्रत सत्य सुंदर के प्ररूपक और आराधक सत्य वचन को महिमा सत्य वचन की छ: उपमायें अवक्तव्य सत्य त्य सत्य वचन का फल अल्प मृषावाद का प्रायश्चित्त मूत्र वसुरानिक अबसुरानिक कथन के उपसंहार नहीं बोलने योग्य छः वचनों का निषेध भाषा से सम्बन्धित आठ स्थानों का निषेध (=) सूत्रांक पृष्ठांक विषय दत्त अनुज्ञात मंत्र का स्वरूप अदनान विरमण महात्रत आराधक के अकरणीय कृत्य दत्त अनुज्ञात संवर के आराधक दत्त अनुज्ञात संवर का फल अन्य साधु के उपकरण उपयोग हेतु अवग्रह ग्रहण विधान ४२० २८६ ४२१ २=६ २६१ २६१ राज्य परिवर्तन में अवग्रह अनुज्ञापन अल्प अदत्तादान का प्रायश्चित्त सूत्र शिष्य के अपहरण का या उसके भाव परिवर्तन का प्रायश्चित आचार्य के अपह्रण या परिवर्तनकरण का प्रायश्चित्त सूत्र ४२२ ४२३ ४२४ ४२५ ४२६ प्रायश्चित्त सूत्र विपरीत कथन का प्रायश्चित्त सूत्र विपरीत प्रायश्वित कहने के प्रायश्चित द्वितीय महाव्रत का परिशिष्ट मृषावाद - विरमण या सत्य महात्रत की पाँच भावना وا؟؟ ४२८ ४२६ ४३० ४२१ ४३२ ४३३ ४३४ ८३५ तृतीय महाव्रत : स्वरूप एवं आराधना ४३६-४४६ ३००-३१३ तृतीय महाव्रत के आराधन की प्रतिशा तृतीय महाव्रत और उसकी पाँच भावना ४३६ ४३७ ४३८ ४२६ ४४१ ४४२ ४४३ ૪૪૪ ४४५ ४४६ तृतीय महावत का परिशिष्ट तृतीय अदत्तादान महाव्रत की पाँच भावना उपसंहार २९२ २६३ २६३ २६३ ૨૪ ४४.७ ४४५ २६४ २६४ २९४ २६८ २६ Rec ३०० ३०१ ३०३ ३०३ ३०४ ३०५ ३०६ ३०६ २०६ ३०६ ३०६ ४४९ ३१० अन्यतीथिकों द्वारा अदत्तादान का आक्षेप स्थविरों द्वारा उसका परिहार चतुर्थ महाव्रत ४५०-६४५ ३१४ चतुर्थं ब्रह्मचयं महाव्रत के आराधन की प्रतिज्ञा ४५० ३१४-४२८ मेव विरमण यत की गांव भावनाएँ ४५१ ३१५ ४५२ ३१६ ५५३ ३१७ ब्रह्मचर्य महिमा ब्रह्मवर्थ की तील उपका ब्रह्मचर्य के खन्हित होने पर सभी महाव्रत खण्डित हो जाते है । ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर सभी महावतों की आराधना हो जाती है ब्रह्मचर्य के विधानक ब्रह्मचर्य के सहायक ब्रह्मचर्य की आराधना का फल ब्रह्मचर्य के अनुकूल वय ब्रह्मन के अनुकूल प्र ब्रह्म की उत्पति और ब्रह्मचर्य पालन के उपाय ( २ ) धर्माधर्मारामबिहारी महावारी ब्रह्मचर्य समाधि स्थान दस ब्रह्मचर्यं समाधि स्थानों के नाम विविक्त शयनानन सेवन (१) विविक्त जायनामन सेवन का फल (२) स्त्री कथा निषेध सूचांक पृष्ठो *#s अब्रा निषेध के कारण- ३ अधर्म का मूल है। ३०७ ३०६ स्त्री राग निषेध ४५५ ३१६ ४५६ ३२० ४५.७ ३२१ ४५८ ३२१ ४५६ ३२२ ** ४६१ ४६२ ४६३ ४६४ ४६५ ४६६ ૪૬૭ (३) स्त्री के आसन पर बैठने का नियेध ४६८ (४) स्त्री की इन्द्रियों के अवलोकन का निषेध ४६६ (५) स्त्रियों के वासनाजन्य शब्द श्रवण का निषेध ४३० (६) भुक्त भोगों के स्मरण का निषेध ४७ १ (७) विकार-वर्धक आहार करने का निषेध ४७२ (८) अधिक आहार का निषेध ४७३ (e) विभूषा करने का निषेध ४७४ (१०) शब्दादि विषयों में आसक्ति का निषेध ४७५ ब्रह्मचर्यं रक्षण के उपाय ४७६ (११) वेश्याओं की गली में आवागमन निषेध ४७७ ब्रह्मचर्ये के अठारह प्रकार ४७८ ३१९ ४७६ ४८० ३२२ ३२२ ३२३ १२३ ३२४ ३२४ ३२५ ३५६ ३२६ ३२७ ३२८ ३२८ ३२६ ३२६ ३३० ३३० ३३१ ३३२ ३३२ ३३३ ३३४

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