Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 11
________________ २४८ 0 ald ૨૪ विषय सूत्रांक पृष्ठांक विषय सूत्रांक पृष्ठोक महावत प्राणातिपात से बाल जीवों का पुनः पुनः प्रथम महावत : अहिंसा महावत का स्वरूप जन्म मरण और साधना ३१०-४१६ २१४-२८. अयतका का निषेध २४७ सभी तीर्थंकरों ने सभी प्राण भूत जीब सत्वों छः जीवनिकाय की हिंसा का परिणाम ३४६२४ की रक्षा करनी चाहिए ऐसी प्ररूपणा की है ३१८२१५ ब जीबनिकाय --हिसाकरण -- प्रथम महावत आराधना प्रतिज्ञा २१६ प्रायश्चित्त - ३ ३५०-३५७ २८०-२५१ प्रथम गहावत और उसकी पाँच भावना २१० सनित्त वृक्ष के मूल में आलोकन आदि के अहिमा के साठ नाम २१६ प्रायश्चित्त सूत्र ३५०२४८ भगवती अहिसा की आठ उपमाएँ २२१ सचित्त वृक्ष पर चढ़ने का प्रायश्चित्त सूत्र अहिंसा स्वरूप के प्ररूपक और पाठक २२२ त्रस प्राणियों को बांधने और बन्धन मुक्त आत्म ग़म दृष्टि ३२४२२४ करने के प्रायश्चित्त सूत्र २४३ ष जीवनिकाय का स्वरूप एवं हिंसा का प्रध्वीकाय आदि के आरम्भ करने का निषेध ३२५-३४६ २२५-२४८ प्रायश्चित्त गुम ३५३ भगवान ने छह जीव निकाय प्ररूपित किये हैं ३२५२२५ सचित्त पृथ्वीकायिकादि पर कायोत्सर्ग करने छह जी निकायों का आरम्भ न करने की के प्रायश्चित्त सूत्र प्रतिजा २२५ अंडों वाले काष्ट पर कायोत्सर्ग करने का छह जीबनिकायों की हिंसा नहीं करनी चाहिए ३२७ २२६ प्रायश्चित्त सूम ३५५ २५० पृथ्वीकाय का आरम्भ न करने की प्रतिज्ञा ३२५ २२७ अस्थिर थूणी आदि पर कायोत्सर्ग आदि करने सचित्त पृथ्वी पर निषद्या (बैठने) का निषेध ३२६ २२८ का प्रायश्चित्त सूत्र अचित पृथ्वी पर बैठने का विधान २२८ बस्त्र से पृथ्कीकाय आदि निकालने का पृथ्वीकायिक जीवों की वेदना जानकर उनके प्रायश्चित्त गुत्र आरम्भ का निषेध किया है ३३० २२८ सदोष-चिकित्सा का निषेध-४ ३५८-३६५ २५२-२५४ अपकायिक जीवों का आरम्भ न करने की मदोष चिकित्सा निषेध ३५८२५२ प्रतिज्ञा २३१ गृहस्थ से व्रण परिकर्म नहीं कराग चाहिए ३५६२५३ अप्कायिक जीयों की हिंसा का निषेध २३१ गृहस्थ रो गण्डादि का परिकर्म नहीं कराना तेजम् कायिक जीवों का आरम्भ न करने की चाहिए ३६०२५३ प्रतिज्ञा २३ गृहस्थ से शल्य चिकित्सा नहीं कराना चाहिए ३६१ तेजस्कायिक एक अमोघ शरत्र २२४ गृहस्थ से बयावृत्य नहीं कराना चाहिए ३६२ २५४ तेजस्कायिक जीवों की हिंसा का निषेध २३४ गृहस्थकृत चिकित्सा की अनुमोदना का निषेध ३६३ वायुकायिक जीवों का आरम्भ न करने गृहस्थ द्वारा ढूंठा आदि निकालने की की प्रतिज्ञा २३६ अनुमोदना का निषेध वायुकायिक जीवों की हिंसा का निषेध २१७ गृहस्थ द्वारा लीव आदि निकालने की वनस्पतिकायिक जीवों का आरम्भ न करने ___ अनुमोदना का निषेध २५४ की प्रतिज्ञा ३३८ २३८ चिकित्साकरण प्रायश्चित्त-५ २५५ बनस्पतिकागिक जीवों की हिंसा का निषेध ३३६ २३६ (१) परस्पर चिकित्सा करने के प्रायश्चित्त वनस्पति शरीर और मनुष्य शरीर वण परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र की समानता २४० परस्पर व्रण की चिकित्सा के प्रायश्चित्त सूत्र ३६७ सकाय का स्वरूप ३४१ २४१ गण्डादि परिकर्म के प्रायश्चित्त सूत्र ३६८ २५६ असकाय के भेद-प्रभेद ३४२ २४२ एक दुसरे के गण्डादि की चिकित्सा करने के वसकाय के अनारम्भ की प्रतिज्ञा २४२ प्रायश्चित्त सूत्र २५८ श्रसकायिकों की हिंसा का निषेध २४३ कृमि निकालने का प्रायश्चित्त सूत्र ३७० आर्य-अनार्य वचनों का स्वरूप २४५ एक दूसरे के कृमि निकालने का प्रायश्चित्त सूत्र ३७१ ३३२ २५४ ३४० ३६६ २६० .

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