Book Title: Chalte Phirte Siddho se Guru
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 6
________________ चलते फिरते सिद्धों से गुरु नग्नता से नफरत करने का अर्थ है कि हमें अपना निर्विकारी होना पसंद नहीं है। पापी रहना एवं उसे वस्त्रों से छुपाये रहना ही पसंद है। जैसे शरीर के घावों को खुला रखना भी तो मौत को आमंत्रण देना है, उन्हें ढकना ही पड़ता है, वैसे ही यदि मन में विकार के घाव हैं तो तन को वस्त्र से ढकना भी अनिवार्य है। वीतरागी भावना के बिना अर्थात् निर्विकारी हुए बिना नग्नता तो मात्र कलंक ही है। अत: तन की नग्नता के साथ मन की नग्नता अनिवार्य है। इसीलिए तो कहा है कि 'सम्यग्ज्ञानी होय बहुरि द्रढ चारित्र लीजै।' बिना आत्मज्ञान के भी कभी-कभी व्यक्ति मुनिव्रत अंगीकार कर लेता है, जिससे कोई लाभ नहीं होता । आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं - “णग्गो पावइ दुःखं णग्गो संसार सागरे भमइ । ___णग्गोन लहहि बोहि, जिणभावण वज्जिओसुइरं ।। जिन भावना से रहित केवल तन से नग्न व्यक्ति दु:ख पाता है, वह संसार सागर में ही गोते खाता है, उसे बोधि की प्राप्ति नहीं होती है। अत: तन से नग्न होने के पहले मन से नग्न अर्थात् आत्मानुभवी एवं निर्विकारी होना आवश्यक है।" जिनागम के सिवाय अन्य जैनेतर शास्त्रों एवं पुराणों में भी दिगम्बरत्व एवं दिगम्बर मुनियों के अनेक उल्लेख मिलते हैं, कुछ इसप्रकार हैं • रामायण में दिगम्बर मुनियों की चर्चा है - "राजा दशरथ जैन श्रमणों को आहार देते बताये गये हैं। भूषण टीका में श्रमण का अर्थ स्पष्ट दिगम्बर मुनि मिलता है।"२ • हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध पुराण श्रीमद् भागवत् और विष्णु पुराण में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का ही दिगम्बर मुनि के रूप में उल्लेख मिलता है। इसी तरह वायुपुराण एवं स्कंध पुराण में भी दिगम्बर जैन मुनियों का अस्तित्व दर्शाया गया है। •बौद्ध शास्त्रों में भी ऐसे उल्लेख मिलते हैं, जो भगवान महावीर से प्रस्तावना पहले दिगम्बर मुनियों का होना सिद्ध करते हैं।' • ईसाई धर्म में भी दिगम्बरत्व को स्वीकार करते हुए कहा गया है कि आदम और हव्वा नंगे रहते हुए कभी नहीं लजाये और न वे विकार के चंगुल में फंसकर अपने सदाचार से हाथ धो बैठे, परन्तु जब उन्होंने पापपुण्य का वर्जित (निषिद्ध) फल खा लिया तो वे अपनी प्राकृत दशा खो बैठे और संसार के साधारण प्राणी हो गये। • इस्लाम धर्म में भी ऐसे दरबेश हुए हैं, जो दिगम्बरत्व के हिमायती थे। तुर्किस्तान में अब्दल नामक दरवेश नंगे रहकर अपनी साधना में लीन रहते थे। • इस्लाम के महान सूफी तत्त्ववेत्ता और सुप्रसिद्ध 'मस्नवी' नामक ग्रन्थ के रचयिता श्री अलालुद्दीक रूसी ने दिगम्बरत्व का खुला उपदेश दिया है। ___ उन्होंने 'अब्दल' दरवेश को याद करते हुए कहा कि एक तार्किक मस्त नंगे अब्दल दरवेश से आ उलझा । उसने सीधे से कह दिया कि 'जा अपना काम कर! तू नंगे के सामने टिक नहीं सकता। जाते-जाते एक बात सुन जा ! वस्त्रधारी को हमेशा धोबी की फिक्र लगी रहती है, किन्तु नंगे तन की शोभा देवी प्रकाश से है। या तो तू नंगे दरवेशों से कोई सारोकार मत रख अथवा उनकी तरह ही तू भी आजाद और नंगा हो जा और अगर तू एकसाथ सारे कपड़े नहीं उतार सकता तो कम से कम कपड़े पहन और मध्यममार्ग को ग्रहण कर!' इसप्रकार हम देखते हैं कि ऐतिहासिक एवं प्रागैतिहासिक श्रमण एवं वैष्णव साहित्य में यहाँ तक कहा गया है कि दिगम्बर मुनि हुए बिना मोक्ष की साधना एवं कैवल्य प्राप्ति संभव नहीं है। - रतनचन्द भारिल्ल १. भावपाहुड़ गाथा ६८ २. सर्ग १४ श्लोक २२ ३. विष्णुपुराण तृतीयांश १७/१८ ४. जातक भाग-२ पृष्ठ १८२ ५. दि हिस्ट्री ऑफ यूरोपियन मोरल चेप-४, पृष्ट-७ ६. मस्तवी जिल्द २ पृष्ठ-३८

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