Book Title: Chaityavandan Samayik Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal View full book textPage 8
________________ साधु इन्होंकी हमेशा सुबहके वक्त स्तुति करते हैं ॥ २ ॥ शत्रुन.. यतीर्थपर श्रीऋषभदेव स्वामी जयवंता वत्"। (उजित)गिरनार-तीर्थपर श्री नेमनाथ स्वामी जयवंता व। सत्य पुरीसाचोरके शोभाभूत श्री महावीरस्वामी जयवंता वर्तो । भरूचमें श्री मुनिसुव्रत स्वामी और मुखरी गांवमें श्री पार्श्वनाथ स्वामी यह पात्रो ही जिनेश्वर दुःख तथा पापको नाश करनेवाले हैं और भी जैसे कि महाविदेह आदि. पांत्र विदेह, पूर्व आदि चार दिशाएँ, अभिनेग आदि चार विदिशाएँ और अतीत, अनागत तथा वर्तमान इस बने जो कोई जिनेश्वर विद्यमान हो उन सब निसको मैं वंदना करता हूं ॥ ३ ॥ आठ कोड़ छप्पन लाख सत्ता हमार बत्तीस सौं व्यासी इतने तीन लोक संबधी मंदिरोंको मैं पं.ना अ.रता हूं ॥ ४ । पंद्रह अन्न बयालीम क्रोड़ अठ्ठावन शाख छत्तीस हजार अस्सी इतनी शाश्वती जिन प्रतिमाको बंदना करता हूं ॥५॥ ॥ज किंचि ॥ जं किंचि नाम तिथं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाइं जिण बिंबाई, ताई सव्वाइं वंदामि ॥१॥ -अथै—जो कोई नाम (रूप) तीर्थ हैं, स्वर्गमें, पातालमें, और मनुष्यलोकमें, जो तीर्थङ्करोंके वित्र हैं, उन सबको मैं नमस्कार कस्ता हूँ।Page Navigation
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