Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 24
________________ (२२) सयुक्त, जीव हिंसा न करना, झूठ न बोलना, चोरी न करनी,. स्त्री सेवन न करना और परिग्रह न रखना, इन . पांच महाव्रतोंसे भूपित ये पांच गुण । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन पांच प्रकारके आचार पालन करनेमें समर्थ हों ये पांच गुण । चलने में, बोलने में, खानेमें पीनेमें चीज़ उठाने रखनमें, और मल मूत्र परठनेमें विवेकसे कार्य करना, जिसमें किसी जीवका नाश न हो, ये पांच समिति और मन, वचन, कायको वशमें रखना' ये तीन गुप्ति इन आठोंको वरावर पालें ये आठ गुण । इन छत्तीस गुणों करके जो युक्त होवे सो मेरे गुरु हैं। ॥अथ खमासमण ॥ इच्छामि खमासमणो, वंदिडं जावणिजाए, निसीहिआएं, मथ्थएण वंदामि ॥ ऐसा कहकर पीछे इरिया वहि० तस्स उत्तरी अन्नस्थ उससिपणं० तक कहना। अर्थ-हे क्षमाश्रमण ! मैं पाप व्यवहारका निषेध करके शरीरकी शक्तिसे आपके चरण कमलोंमें इच्छा करके नमस्कार करता हूँ-मस्तकसे वंदना करता हूँ। विधि-यह पाठ वीतराग देव और गुरु महारानके और सामायिकके समयमें स्थापनाचार्य जो पुस्तक विगैरे रक्खा हो उनके सम्मुख खड़े हो दोनों हाथ जोड़ पंचांग (दो हाथ, दो घुटने और पांचवां मस्तक ) जमीनसे लगाकर वन्दनाः करनेका है। साना- साना r ow द्वारा सम्पन्न प्राध्यात्मिक क्रान्ति में प्रापका अभूतपूर्व योगदान है। उनके. मिशन की जयपुर से संचालित समस्त गतिविधियों प्रापकी सूझ-बूझ एवं सफल संचालन का ही सुपरिणाम हैं।

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