Book Title: Chaityavandan Samayik
Author(s): Atmanandji Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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(३१) ॥ सामायिक पारनेकी गाथा ॥ सामाइय वयजुत्तो, जाव मणे होइ नियम संजुत्तो ।। छिन्नइ असुहं कम्म, सामाइअ जत्ति आवारा ॥१॥ सामाइ अंमिउ कए, समणो इव सावओ हवइ जम्हा ॥ एएण कारणेणं, बहुसो सामाइअं कुजा ॥ २॥ सामायिक विधिसे लिया विधिले पारा । विधि करते जो कोई अविधि हुवा हो वै वह सब मनवचन काय कर मिच्छामि
___ अर्थ-पामायिक व्रतसे युक्त नहां तक उस नियमसे सहित हो वहां तक अशुभ कर्मका छेदन करता है। (जितनी वार सामायिक करे उतनी बार) इसलिए सामायिक करते समय साधुके जैसा ही श्रावक भी है। इस कारणसे बहुत वार सामायिक करना चाहिए। सामायिक विधिप्से लिया विधिसे पारा, विधि करते जो कुछ अविधि हुई हो वह सब मन, वचन, काय कर मिच्छामि दुक्कडं । (नोट) " सामायिक विधिमें आए हुए शब्दोंका अर्थ"
इच्छ-आपकी आज्ञा प्रमाण है। सामायिक संदिसाहुं-मुझे सामायि करनेका आदेश दो। सामायिक ठाउं-मैं सामायिककी स्थापना करता हूँ। इच्छकारी भगवन् ! पसायकरी सामायिक दंडक उच्चरावोजी-हे भगवन् ! अपनी इच्छा पूर्वक कृपा करके सामायिक व्रतका पाठ उच्चरावोजी (फरमाइए)